वैश्विक महामारी कोरोना से तो दुनिया दो चार माह में निपट लेगी,सम्पन्न देशों की अर्थव्यवस्था हैसियत एवं प्रभुत्व का बड़ा बदलाव होगौ । उससे निपटने मेंउन्हें वर्षो लगेगें। अमेरिका एवं योरेापियन देश तो इससे निपट लेगें ,उनके पास मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ उत्पादन के संसाधन मोजूद है। उनको केवल डिमाण्ड बढ़ने तक का इंतजार करना होगा ।सबसे बुरी हालत होने वाली है अरब मुल्क की जो तेल पर आश्रित हैं। जिनकी एकमात्र पूंजी तेल है।जो इस समय पानी से भी सस्ता हो गया है।उससे भी बड़ी मुसीबत हैा उसका भंडारण नहीं किया जा सकता है। पहले से ही तेल के विकल्प तलाशने वाली दुनिया ने करोना काल में उसके विकल्प की खोज तेज कर दी है।
तेल के विकल्प उसे बेहतर,सस्ते पयर्यावरण के अनुकूल लग रहे हैं।वैसे भी आदम हौव्वा के जमाने से पा्रकृतिक ने अरब से सौतेला रवैया अपनाया है कुदरत ने उसे केवल रेगीस्तान दिया है।तेल के भंडार निकलने एवं दुनिया मे ंतेल का उपयोग बढ़ने से अरब मुल्कों का अर्थशास्त्र एकाएक बदल गया ं।परन्तु अरब मुल्क को एकाएक मिली अकूत सम्पादा ने वहां के निवासियोंको जाहिल,निकम्मा? अययास और घमण्डी बना दियां।हमारे देश के लिए अरब मुल्क से सौदा घाटा के व्यापार रहा है। तेल के एवज में हमारे देश न केवल करोडो डालर विदेशी मुद्रा खर्च करनी पढ़ती है वहीं अरब मुल्कों से व्यापार में देश समर्पणवादी नीतियों का पालन करना पढ़ता था ।बदले हुए आथर््िाक परीदश्र्य में अरब मुल्कों से अपनी शर्तो पर व्यापार करेगा।