विकास किसका
नेहरू ने भारत का जो कबाड़ा किया था, उसे सुधारने के लिए मोदीजी ने पहला क्रांतिकारी काम ये किया कि योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया।
अरविंद पनगढ़िया उस नये-नवेले नीति आयोग के पहले मुखिया बनाये गये।
पनगढ़िया जी की याद रखने लायक एकमात्र उपलब्धि यही है कि जब देश में नोटबंदी हुई तब उन्होंने डिजिटल ट्रांजेक्शन करने वालों के लिए एक इनामी प्रतियोगिता शुरू करने की जोर-शोर से वकालत की।
उसके कुछ समय बाद पनगढ़िया जी ये कहते हुए विदा हो गये कि अमेरिका वाली अपनी पक्की नौकरी मैं छोड़ नहीं पाउंगा।
ऐसे में मोदीजी के सपनों के मुताबिक भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाने की जिम्मेदारी मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमहण्यम पर आ गई।
अरविंद सुब्रहमण्यम ने कुछ समय बाद आकर शुभ समाचार दिया-- दादा बनने वाला हूँ। बेटा और बहू अमेरिका में हैं। मैं नौकरी छोड़कर जा रहा हूँ। नया भारत किसी और से बनवा लीजिये।
उसके बाद उर्जित पटेल, विरल आचार्य और ना जाने कितने और... थिंक टैंक के सारे गोला दागने वाले गोली देकर निकल गये।
मगर जब तक नीति आयोग के प्रमुख अमिताभ कांत हैं, मोदीजी को चिंतित होने की कोई ज़रूरत नहीं है।
समस्या को अमिताभ कांत ने एकदम जड़ से पकड़ा है-- ससुरा लोकतंत्र ही सभी समस्याओं की जड़ है।
मोदीजी भी यह बात अच्छी तरह समझते हैं। इसीलिए सभी संस्थाओं को गिराकर फिलहाल ज़मीन को समतल किया जा रहा है, ताकि लोकतंत्र मुक्त भारत की तरफ सरपट दौड़ लगाई जा सके।