राकेश टिकैट के आँसुयों ने बदली तश्वीर



राजेन्द्र कात्यायन

26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किला पर निशान साहब का झंडा फहराने के बाद जो सरकार का रवैया आंदोलन के तहत रहा उससे एक बार कि ऐसा महसूस किया जाने लगा कि अब यह आंदोलन बैकफुट पर चला जाएगा और सरकार इस घटना को लेकर किसानों के संगठनों पर इस बात का दबाव बनाएगी कि अब वो अपनी मांगों को लेकर धरना समाप्त कर दें। और सरकार द्वारा ऐसा ही प्रयास किया जाने लगा। किसान संगठनों के 39 नेताओं के ऊपर गंभीर देश विरोधी गतिविधियों के मामलों की धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए साथ ही साथ गाजीपुर बॉर्डर चिल्ला बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों की संख्या में बढ़ोतरी की जाने लगी। किसान नेताओं को नोटिस दिये गये कि वह अब आंदोलन छोड़ें और अपने अपने घरों को वापस जाएं।
 इस घटना के बाद इन धरनास्थ्लों से किसानों की संख्या धीरे-धीरे कम भी होने लगी थी लेकिन इसी बीच गाजीपुर बॉर्डर पर जिस पर किसान नेता राकेश टिकैत धरना देकर बैठे हुए थे वहां पर एक षड्यंत्र का पता चलता है जिसका खुलासा स्वयं राकेश टिकैत करते हैं। राकेश टिकट कहते हैं कि मैंने मन बना लिया था कि मैं अपनी गिरफ्तारी दे दूंगा क्योंकि जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद प्रशासन ने उनके धरना स्थल की बिजली और पानी रोक दिए थे तो अब उनको लग रहा था कि मुझे गिरफ्तारी दे देनी चाहिए। लेकिन उन्होंने साथ ही साथ इस तरह का खुलासा किया कि यहां पर कुछ बीजेपी के द्वारा प्रायोजित कार्यकर्ता गुंडे बदमाश के रूप में ईखठे  किए गए हैं जो कि हमारे किसानों की पिटायी करा सकते है तो उन्होंने यह तय किया कि अब वह बौर्डर नहीं छोड़ेंगे और अपने किसानों को इस हालात में छोड़कर वह कहीं नहीं जाने वाले। और यह कहते-कहते वह भावुक हो गए और उनके आंसू निकल आये।
किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुयों ने  जैसे उस आंदोलन को पुनर्जीवित करने का कार्य किया हो जो कि लगभग आप अपनी समाप्ति की ओर हो चला था। एक बारगी ऐसा लगने लगा था कि अब यह आंदोलन अपने अंतिम चरण में है और धीरे-धीरे किसान यह बॉर्डर छोड़कर चले जाएंगे लेकिन उन आंसुयों ने पूरी बाजी ही पलट दी और यह मैसेज धीरे-धीरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चला गया कि अगर राकेश टिकैत के साथ इस तरह के व्यवहार किया जाता है तो वह पीछे नहीं हटेंगे। और रात को ही वहां पर सभाएं होने लगी अगले दिन सुबह ही खाप पंचायत मुजफ्फरनगर के अंदर बुलाई जाती है और इस पंचायत में ऐलान किया जाता है कि अगर अब मान सम्मान की लड़ाई है तो राकेश टिकैत के मान सम्मान के लिए हम सारी वयमन्स्य्ता भूल कर एक होकर और राकेश टिकैत का साथ देंगे। तो इस तरह से यह पूरा आंदोलन जो कि राजनैतिक आंदोलन की तरह चल रहा था अब एक सामाजिक आंदोलन में बदलता हुआ दिखाई दिया और तभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के रूप में जाने वाले नेता का पुत्र राकेश टिकैत जो आज इस आंदोलन की अगुवाई कर रहा था आज उसके सम्मान के लिए उसका समाज फिर खड़ा हुआ दिखाई दिया।
यहां पर यह मानना लाजमी होगा कि भाजपा शासन के कर्ताधर्ता या बुरोक्रेट्स  इस बात को नहीं समझ पाए कि हम इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए ऐसी हरकतें जो कि पूर्व में भी  उन्होंने किया कि उन्होंने ट्रैक्टर को तेल देना मना किया जो बाद में वापस लेना पड़ा फिर उन्होंने वहां आंदोलन की बिजली पानी काटी जिसको दिल्ली सरकार ने अपनी तरफ से जारी कर दिया। औरउनकी यह भूल ही थी कि हम राकेश टिकैत को गिरफ्तार करके जेल भेज देंगे और इस आंदोलन का खात्मा कर देंगे यह भी उन अधिकारियों की भूल ही रही जिसके परिणाम से वह बाकिफ नहीं थे। इस आंदोलन में नया रक्त संचार हुया जिसका परिणाम आज देखने को मिला जो शाम को 27 जनवरी को गाजीपुर बौर्डर धीरे-धीरे खाली होने लगा था वह आज 29 तारीख को फिर से दूनी  और चौगुनी ताकत के साथ वहां पर भीड़ जमा हुई और आंदोलन का साथ देने के लिए यह किसान वापस आने लगे। यही नहीं बड़ी तादाद में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान अब स्टैंडबाई में है कि बारी बारी से बोलो गाजीपुर बॉर्डर पर जाकर धरना स्थल पर अपना विरोध प्रदर्शन करेंगे।
किसान आंदोलन का परिणाम क्या होगा किसान अपनी मांगों को मनवा पाएंगे या नहीं यह तीनों बिल वापस होंगे या नहीं यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत यह सिद्ध करने में कामयाब हो गए हैं कि यह लड़ाई उनकी व्यक्तिगत नहीं है बल्कि लड़ाई उनके अपने समाज की है किसान समाज की है और वह जो लड़ाई लड़ रहे हैं वह किसानों के हित के लिए लड़ रहे हैं।
बहरलाल आंदोलन का नतीजा कुछ भी हो लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि सत्ता में जो सरकारें होती हैं उनका यह कर्तव्य होता है कि अगर उनसे कोई नाराज है कोई तबका उनसे कुछ मांग रख रहा है तो उसकी मांग को वह या तो पूरा करें या उसको समझाने का उपयोग संधान करें। किसी भी संघर्ष को किसी भी आंदोलन को बलपूर्वक हटाना या उसको समाप्त कराना यह एक स्वच्छ लोकतंत्र के लिए बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है। माना कि आज संसद में विपक्ष इस काबिल नहीं है कि वह अपना विरोध दर्ज करा सकें लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सत्ता निरंकुश हो जाए और वह किसी को सुनने को तैयार ही ना हो। डॉक्टर लोहिया कहा करते थे कि सड़कें अगर सुनी हो जाती है तो संसद आवारा हो जाती है। आज यही प्रतीत हो रहा है कि अगर विरोध की बात जब संसद में नहीं उठाई जाएगी तो सड़क ही एकमात्र विकल्प बचता है जो कि डॉ लोहिया की बात को आज चरितार्थ कर रहा है।