मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कहा गया. लेकिन मैंने कभी नहीं सुना कि कोई उनको मारने का षडयंत्र कर रहा हो. कभी ऐसा सुनने में नहीं आया कि उनको अर्बन नक्सल से जान का खतरा है, या कोई 84 साल का पर्किंसन का मरीज बुजुर्ग उन्हें मारने की साजिश कर रहा है.
एक हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री जी हैं. सुना है बहुत मजबूत हैं. मजबूत हैं तो काफी ताकतवर होंगे. खूब घी खाते होंगे. दूध बदाम पीते होंगे. दंड भांजते होंगे. जो भी करते हों, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी इस ब्रम्हांड में अकेले ऐसे प्राणी हैं जो मजबूत होकर भी परमानेंट प्रताड़ित हैं. वे हमेशा खतरे में रहते हैं.
वे मुख्यमंत्री थे तब भी खतरे में रहते थे. कई बार ऐसी थ्योरीज सामने लाई गईं कि कोई भी उनको मारने चला आता था. वे प्रधानमंत्री बन गए, तब भी बहुत प्रताड़ित हैं. आज भी ये हाल है कि कोई भी उन्हें मारने का षडयंत्र रचने लगता है. प्रोफेसर, पत्रकार, शिक्षक, वकील, वो हर व्यक्ति जो सरकार से शिकायत कर सकता है, उससे उनको खतरा है. यहां तक कि 84 साल का पर्किंसन का मरीज, जो पानी पीने के लिए स्ट्रॉ मांग रहा था, वह भी उनकी हत्या का षडयंत्र रचने का आरोपी बनाया गया.
भारत का प्रधानमंत्री इतना कमजोर होता है, यह बात मुझे पता ही न चलती अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री न बनते.
तो अब रविशंकर प्रसाद कह रहे हैं कि पेगासस जासूसी कांड उनकी सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है. जरूर होगा. जिस सरकार को 84 साल के बुढ्ढे के कांपते हाथों से इतना बड़ा खतरा था कि उसे जेल में बंद करके मारना पड़ा, उसे किसी से भी खतरा हो सकता है. सरकार न हुई, छुईमुई हो गई. जरा सा छू दो तो कुम्हला जाती है.
रविशंकर प्रसाद को ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनकी परम नाजुक सरकार को अपार खतरा है. इस खतरे को देखते हुए ही उन्होंने एनएसओ कंपनी का लाइसेंस लिया और अपने देश के ही मंत्रियों, जजों, पत्रकारों और नागरिकों की जासूसी करवाई.
लेकिन वे बेचारे इसे स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.
पर सवाल है कि अगर भारत सरकार ने जासूसी कांड को अंजाम नहीं दिया है तो ये ज्यादा खतरनाक बात है. इसका मतलब है कि भारत के प्रमुख लोगों की जासूसी कोई और देश करवा रहा है. लेकिन ऐसा नहीं है. भारत सरकार ने इनकार नहीं किया कि वह इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं कर रही है. सिद्धार्थ वरदराजन ने, उनकी रिपोर्ट तर्कसंगत ढंग से ये बात सामने रखी है कि ये काम भारत सरकार ही करवा रही है. अब सवाल ये है कि क्या सरकार की जवाबदेही तय हो सकेगी? क्या भारत के नागरिकों को अपनी सरकार से ये उम्मीद है कि वह गैरकानूनी काम नहीं करेगी? क्या विपक्ष ये दबाव बना सकेगा कि सरकार अपने गैरकानूनी कृत्य की जिम्मेदारी ले? मुझे संदेह है.