राजेन्द्र मिश्र-
कोई यूं ही धरतीपुत्र, किसान मित्र, विकास पुरुष नहीं बन जाता। तभी कोई व्यक्ति यह मुकाम पाता है जब लोगों के दिलों में राज करता है। ऐसे ही थे नेताजी जिनका नाम था मुलायम सिंह यादव। लोकतंत्र की अवधारणा को अपने मन में समेटे हक व हकूक एवं न्याय की लड़ाई लिए संघर्षरत रहने वाला यह नेता आज चिर निद्रा में सो गया।
अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन करने के लिए सैफई में जिस तरह से हुजूम उमड़ा वह नेता जी की लोकप्रियता को साक्षात परिभाषित कर रहा था।
सैफई के आसपास के लोग कल रात से ही इस गांव की तरफ निकल पड़े थे। और उनकी अंतिम विदाई के दिन तो देश व प्रदेश से आने वालों का तांता सुबह से ही लगने लगा था। क्या आम क्या खास नेता जी के चाहने वाले किसी दल या पार्टी की सीमा में बंधे न रहकर इस लोकप्रिय शख्सियत के अंतिम दर्शन करने चले आ रहे थे।
क्या बूढ़े क्या बच्चे सैफई या उसके आसपास के लोगों में जिस किसी से भी बात करो तो लोग उनके बारे में कुछ ना कुछ अलहदा विशेष ही बताते जोकि मुलायम को एक नेता के रूप में उनकी शख्सियत को औरों से कैसे जुदा करती नजर आती।
मेरी उनसे पहली मुलाकात जब हुई जब वह सन 1989 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। औपचारिक परिचय के दौरान जब उन्होंने मेरे गांव का नाम एक समाजवादी नेता की पहचान के रूप में बताया तो मुझे हैरानी हुई क्योंकि इससे पहले मैंने उसके बारे में मुझे इतनी जानकारी नहीं थी जितनी नेताजी को थी वह थे समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल।
नेताजी के संपर्क में जितना रहा और जितना उनको जाना उससे एक बात तो स्पष्ट होती है कि नेताजी को भारतीय राजनीति के सामाजिक पहलू की कितनी गहन व अगाध समझ थी वह उनके राजनीतिक एजेंडे से परिलक्षित होती है। नेताजी जाति प्रथा के प्रबल विरोधी थे। वह जात पात पर विश्वास नहीं करते थे, इसको उन्होंने अपने जीवन में भी उतारा था और वह इसको सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित भी करते थे।
उनकी राजनैतिक जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया जब इस शख्सियत ने अपने राजनीतिक कैरियर को दांव पर लगा लोकतंत्र की बेहतरी के लिए कार्य करते हुए संविधान की रक्षा की।
मुलायम का अपने समर्थकों व अपने लोगों के साथ सीना तान कर खड़े रहना ही मुलायम को मुलायम बनाती है।
वह ऐसे थे कि वह अपने लोगों के पारिवारिक चीजों व मसलों पर भी अपनी निगाह रखते थे और उनसे कनेक्ट करते थे।
मेरे स्वयं के कुछ बाक्यात ऐसे हैं जो इस चीज को इंगित करते हैं कि कैसे मुलायम अपनों का साथ देने के लिए कितने कठोर भी हो जाया करते थे। मुझे याद है राजधानी स्थित एक पुलिस स्टेशन में किसी बात को लेकर पुलिस वालों से संघर्ष हो गया तो कैसे मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ घंटों के अंदर जांच कराकर पूरा का पूरा थाना सस्पेंड कर दिया और इस बात की परवाह नहीं की कि मीडिया मैं इसका क्या संदेश जाएगा।
एक बार जब नेता जी सी एम थे और में किसी आकस्मिक परिस्थिति में गाजियाबाद में नेताजी के सम्मुख गया जहां वह किसी विवाह समारोह में आए हुए थे तो काफी भीड़ होने के बावजूद उन्होंने मुझसे सीधे सवाल दागा यहां कैसे ? और अपने कार्यक्रम की व्यस्तता के बावजूद उन्होंने तुरंत समस्या के निराकरण के लिए प्रशासनिक जिम्मेदारी डिप्यूट कराई।
यही नहीं छोटे-बड़े हर तरह के मसलों पर वह चर्चा किया करते थे जबकि उस समय हम क्षात्र ही थे।