तानाशाही के मुंह पर सुप्रीम कोर्ट का तमाचा

कृष्ण कान्त -
सरकार की नीतियों और कदमों की आलोचना को एंटी-नेशनल नहीं कहा जा सकता है। सरकार की आलोचना किसी टीवी चैनल का लाइसेंस रद्द करने का अधिकार नहीं हो सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले दावे बिना किसी आधार के नहीं होने चाहिए। इसके पीछे मजबूत तथ्य होने चाहिए। ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे टेररिस्ट लिंक साबित होता हो। ऐसा कोई भी तथ्य नहीं है, जिससे साबित हो कि राष्ट्रीय सुरक्षा या फिर कानून-व्यवस्था प्रभािवत हुई हो।

सभी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट को खुफिया नहीं कहा जा सकता है। इससे लोगों के अधिकारों और उनकी आजादी पर असर पड़ता है। सरकार को सूचनाओं को सार्वजनिक करने से पूरी तरह मुक्त नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा लोगों को अधिकार छीनने के लिए नहीं उठाया जा सकता है। गृहमंत्रालय ने इस मामले में मनमाने ढंग से यह मुद्दा उठाया है। हम सरकार को ऐसा कदम नहीं उठाने दे सकते, जिससे प्रेस हर हाल में उसे समर्थन करे। 

लोकतांत्रिक देश मजबूती से चलता रहे, इसके लिए प्रेस की स्वतंत्रता जरूरी है। लोकतांत्रिक समाज में इसका किरदार बहुत अहम होता है। यह देश की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालता है।

इन टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने एक मलयाली चैनल पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए बैन को हटा दिया।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है उनकी फेसबुक वॉल से)