ब्राह्मण का संकुचित व घरघुस्सू हो जाना
शंभू नाथ शुक्ल

कल मुझसे एक ग़ैर ब्राह्मण आईएएस अधिकारी ने पूछा, कि क्या वजह है ब्राह्मण अब UPSC की परीक्षाओं में बनियों से भी पीछे है। उन्होंने कहा, क्या ब्राह्मण धनहीन है या भाषाहीन है अथवा आईटी सेक्टर में घुस कर विदेश भाग जाता है? 
यह सोचनीय प्रश्न था। इसे जातिमुक्त होने की बात कर टाला नहीं जा सकता। क्योंकि यहाँ हर जाति के प्रोग्रेसिव कहे जाने लोगों ने भी अपनी जाति के जातकों की सफलता पर बधाई दी और ख़ुशी जतायी। इसलिए मैंने कहा धनहीन तो हर समाज में हैं और अंग्रेज़ी न जानने वाले भी तथा विदेश जा कर पैसा कमाने वालों में भी ग़ैर ब्राह्मण जातियों की कोई कमी नहीं है। 
असली बात है, ब्राह्मण का मूर्ख और जड़ होना। वह तो बस किसी का ग़ुलाम हो सकता है और अतीत पर गर्व कर सकता है। ठीक मुसलमानों की तरह। लेकिन उसकी स्थिति मुसलमानों से हीन है क्योंकि मुस्लिम भले ग़रीब भी हों पर उनके पास अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम देशों की छतरी है और इस्लाम ने उसे एक सामाजिक माहौल दिया है। मगर ब्राह्मण संकुचित और घरघुस्सू होता गया है। अशोक के समय ब्राह्मणों का पलायन दक्षिण देश में हुआ था, ख़ासकर चेर और पाँड्य राजाओं के यहाँ। वहाँ अशोक की पहुँच नहीं थी। वहाँ से ये अरब तक फैले, किंतु उत्तर में ये दयनीय स्थिति में रहे। यही कारण है कि सारे आचार्य दक्षिण से आए। अंग्रेजों के समय जब दक्षिण में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन तीव्र हुए तो EMS नम्बूद्री जैसे नेताओं ने इन्हें एक नया रास्ता दिया था। लेकिन वही ब्राह्मण आज फिर धर्म के खोल में घुस गया है। उसकी सोच पर जाला पड़ गया है इसलिए उसका पतन निश्चित है।
मज़े की बात कि शंकराचार्य से लेकर EMS नम्बूद्रीपाद तक सारे नये दर्शन दक्षिण से उत्तर आए और ब्राह्मण ही उसके वाहक बने। सब में आत्मा के समान होने पर जोर है। शायद इसलिए भी क्योंकि अरब के संपर्क में आए ब्राह्मणों का सामना एक नये दर्शन इस्लाम और ईसाईयत से हुआ। उन दर्शनों का असर भी पड़ा।