बरिष्ठ पत्रकार शम्भू नाथ की फेसबुक वाल से


एक पत्रकार की औक़ात!
वैसे जनता के बीच एक पत्रकार की औक़ात ”पत्तलकार” की ही है। अकेले कैलाश को ही दोष क्यों दें, राबड़ी ने भी निशान्त चतुर्वेदी को यही शब्द कहे थे। जबकि निशान्त को कई लाख रुपये महीने की सैलरी मिलती होगी। सुधीर चौधरी और रजत शर्मा जैसे दिग्गज संपादकों की हालत इससे बेहतर नहीं होगी। उन्हें आम पब्लिक से लेकर बड़े-बड़े राजनेता यही कहते हैं। अब न तो रामनाथ गोयनका रहे न साहू शांति प्रसाद जैन, अशोक जैन अथवा जीडी या केके बिड़ला जैसे मालिक। जिनके लिए मीडिया का मतलब सत्ता को आइना दिखाना होता था। जब खुद मालिक दबंग थे, तब उनका पत्रकार भी दबंग था।
अब टीवी मीडिया ने जब मालिकों को चूहा बना दिया है, उनके पत्रकार भी चूहे बन गए हैं। जनता के साथ उसके कोई सरोकार हैं नहीं तो कौन खड़ा होगा और क्यों खड़ा होगा, उसको जूता दिखाने के ख़िलाफ़।
आज पत्रकार का मतलब है, मेरा, तेरा, उसका पेड आदमी! लेकिन यह मेरा, तेरा या उसका कोई राजनेता ही होगा। आज देखिए, मीडिया हाउस और उनके पत्रकार व संपादक “टाउट” या “दल्ले” का काम करते हैं और अपना समाज दल्लों को पसंद नहीं करता। उसे वह सदैव 'भाँड़' ही मानता है। ऐसे दल्लों की औक़ात होगी भी क्या!
पत्रकार यदि प्रतिज्ञा करे, कि वह समानांतर चौथा स्तंभ बनकर बनेगा और कभी भी किसी सरकारी कमेटियों के भीतर व विश्वविद्यालयों अथवा संसद में जाने के लिए किसी पार्टी/नेता की दल्लागिरी नहीं करेगा, तो यक़ीन मानिए, कि गली का नेता तो दूर कोई प्रधानमंत्री या किसी पार्टी का अध्यक्ष भी उसे औक़ात दिखाने की बात नहीं करेगा।
अरे पत्रकारों/संपादकों जनता के बीच जाओ और पुन: अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा अर्जित करो। लाखों/करोड़ों की सैलरी पाने से आपकी औक़ात नहीं बन सकती। औक़ात तब बनेगी, जब आपकी स्वतंत्र हैसियत बनेगी।एक पत्रकार की औक़ात!
वैसे जनता के बीच एक पत्रकार की औक़ात ”पत्तलकार” की ही है। अकेले कैलाश को ही दोष क्यों दें, राबड़ी ने भी निशान्त चतुर्वेदी को यही शब्द कहे थे। जबकि निशान्त को कई लाख रुपये महीने की सैलरी मिलती होगी। सुधीर चौधरी और रजत शर्मा जैसे दिग्गज संपादकों की हालत इससे बेहतर नहीं होगी। उन्हें आम पब्लिक से लेकर बड़े-बड़े राजनेता यही कहते हैं। अब न तो रामनाथ गोयनका रहे न साहू शांति प्रसाद जैन, अशोक जैन अथवा जीडी या केके बिड़ला जैसे मालिक। जिनके लिए मीडिया का मतलब सत्ता को आइना दिखाना होता था। जब खुद मालिक दबंग थे, तब उनका पत्रकार भी दबंग था।
अब टीवी मीडिया ने जब मालिकों को चूहा बना दिया है, उनके पत्रकार भी चूहे बन गए हैं। जनता के साथ उसके कोई सरोकार हैं नहीं तो कौन खड़ा होगा और क्यों खड़ा होगा, उसको जूता दिखाने के ख़िलाफ़।
आज पत्रकार का मतलब है, मेरा, तेरा, उसका पेड आदमी! लेकिन यह मेरा, तेरा या उसका कोई राजनेता ही होगा। आज देखिए, मीडिया हाउस और उनके पत्रकार व संपादक “टाउट” या “दल्ले” का काम करते हैं और अपना समाज दल्लों को पसंद नहीं करता। उसे वह सदैव 'भाँड़' ही मानता है। ऐसे दल्लों की औक़ात होगी भी क्या!
पत्रकार यदि प्रतिज्ञा करे, कि वह समानांतर चौथा स्तंभ बनकर बनेगा और कभी भी किसी सरकारी कमेटियों के भीतर व विश्वविद्यालयों अथवा संसद में जाने के लिए किसी पार्टी/नेता की दल्लागिरी नहीं करेगा, तो यक़ीन मानिए, कि गली का नेता तो दूर कोई प्रधानमंत्री या किसी पार्टी का अध्यक्ष भी उसे औक़ात दिखाने की बात नहीं करेगा।
अरे पत्रकारों/संपादकों जनता के बीच जाओ और पुन: अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा अर्जित करो। लाखों/करोड़ों की सैलरी पाने से आपकी औक़ात नहीं बन सकती। औक़ात तब बनेगी, जब आपकी स्वतंत्र हैसियत बनेगी।एक पत्रकार की औक़ात!
वैसे जनता के बीच एक पत्रकार की औक़ात ”पत्तलकार” की ही है। अकेले कैलाश को ही दोष क्यों दें, राबड़ी ने भी निशान्त चतुर्वेदी को यही शब्द कहे थे। जबकि निशान्त को कई लाख रुपये महीने की सैलरी मिलती होगी। सुधीर चौधरी और रजत शर्मा जैसे दिग्गज संपादकों की हालत इससे बेहतर नहीं होगी। उन्हें आम पब्लिक से लेकर बड़े-बड़े राजनेता यही कहते हैं। अब न तो रामनाथ गोयनका रहे न साहू शांति प्रसाद जैन, अशोक जैन अथवा जीडी या केके बिड़ला जैसे मालिक। जिनके लिए मीडिया का मतलब सत्ता को आइना दिखाना होता था। जब खुद मालिक दबंग थे, तब उनका पत्रकार भी दबंग था।
अब टीवी मीडिया ने जब मालिकों को चूहा बना दिया है, उनके पत्रकार भी चूहे बन गए हैं। जनता के साथ उसके कोई सरोकार हैं नहीं तो कौन खड़ा होगा और क्यों खड़ा होगा, उसको जूता दिखाने के ख़िलाफ़।
आज पत्रकार का मतलब है, मेरा, तेरा, उसका पेड आदमी! लेकिन यह मेरा, तेरा या उसका कोई राजनेता ही होगा। आज देखिए, मीडिया हाउस और उनके पत्रकार व संपादक “टाउट” या “दल्ले” का काम करते हैं और अपना समाज दल्लों को पसंद नहीं करता। उसे वह सदैव 'भाँड़' ही मानता है। ऐसे दल्लों की औक़ात होगी भी क्या!
पत्रकार यदि प्रतिज्ञा करे, कि वह समानांतर चौथा स्तंभ बनकर बनेगा और कभी भी किसी सरकारी कमेटियों के भीतर व विश्वविद्यालयों अथवा संसद में जाने के लिए किसी पार्टी/नेता की दल्लागिरी नहीं करेगा, तो यक़ीन मानिए, कि गली का नेता तो दूर कोई प्रधानमंत्री या किसी पार्टी का अध्यक्ष भी उसे औक़ात दिखाने की बात नहीं करेगा।
अरे पत्रकारों/संपादकों जनता के बीच जाओ और पुन: अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा अर्जित करो। लाखों/करोड़ों की सैलरी पाने से आपकी औक़ात नहीं बन सकती। औक़ात तब बनेगी, जब आपकी स्वतंत्र हैसियत बनेगी।