न एम्बुलेंस न बेड न बैकुन्ठधाम !


 

श्मशानों को बाड़ लगाकर ढंक देने से ये सच्चाई छुप नहीं सकती कि जज साब की पत्नी ने दवाई के बिना उनकी आंखों के सामने ही दम तोड़ दिया. आप आंकड़े दबा लेंगे लेकिन उन परिवारों से क्या छुपाएंगे जिन्होंने अपने परिजन खो दिए. मूर्ख शासक बड़े मेहनती होते हैं, लेकिन हमेशा गलत दिशा में मेहनत करते हैं. 


लखनऊ में पूर्व जज रमेश चंद्र की पत्नी कोराना मरीज थीं. वे तड़पती रहीं. जज साब डीएम, एसपी, सीएमओ सबको फोन मिलाते रहे. कोई मदद नहीं मिली. न दवा, न एंबुलेंस. जज साब के आंखों के सामने उनकी पत्नी की मौत हो गई. मौत के बाद भी शव उठाने कोई नहीं आया. जज साब की एक चिट्ठी जारी हुई है जिसमें वे मदद मांग रहे हैं.


सीएम योगी खुद संक्रमित हैं. उनके लिए पीजीआई में एक कमरा आरक्षित कर ​दिया गया है. अगर उन्हें जरूरत पड़ेगी तो फटाक से उसी आरक्षित रूम में भर्ती करा दिया जाएगा. उसी लखनऊ में मरीज अस्पतालों के बाहर मर रहे हैं, मुख्यमंत्री के लिए कमरा आरक्षित है.  


नियम बना दिया गया है कि अस्पताल में भर्ती होने के लिए सीएमओ का पत्र चाहिए. अब बताओ कि कौन कोरोना मरीज सीएमओ से पत्र लिखवाने जाएगा? लेकिन मामला इतना ही नहीं है. भारत समाचार रिपोर्ट दे रहा है कि केजीएमयू में कोविड मरीजों की भर्ती रुक गई है. सीएमओ के अनुमति पत्र के बाद भी किसी को भर्ती नहीं किया जा रहा है. सीएमओ का रेफरेंस लेकर कोविड मरीज घूम रहे हैं और ये पत्र अब किसी काम नहीं आ रहा है. 


यूपी में कल शाम तक 1,11,835 एक्टिव केस बताए गए. इनमें से कुछ हजार लखनऊ में होंगे. क्या यूपी सरकार राजधानी के कुछ हजार केस भी नहीं संभाल सकती? जाहिर है कि या तो आंकड़ों में भी घोटाला चल रहा है या फिर यूपी सरकार इतनी नकारा है कि अपनी राजधानी तक नहीं संभाल सकती. 


लखनऊ के श्मशानों में जलती अनगिनत चिताओं के वीडियो और फोटो से सच्चाइयां सामने आ रही थीं तो भैंसाकुंड बैकुंठ धाम को ढंका जा रहा है ताकि कोई वीडियो न बना ले. उन्हें लगता है कि श्मशान घाट ढंक देने से जनता सच नहीं जान पाएगी. तानाशाह कभी नकारा नहीं होते. उनमें क्षमताएं बहुत होती हैं, बस वे उन क्षमताओं का इस्तेमाल भस्मासुर की तरह करते हैं. वे अपनी ताकत का इस्तेमाल किसी की जान बचाने के लिए नहीं करते, वे अपनी ताकत लोगों की आवाज कुचलने में लगा देते हैं. वे यह प्रयास नहीं कर रहे कि लोगों को इलाज मिले और वे श्मशान तक पहुंचें. वे प्रयास कर रहे हैं कि धधकते श्मशानों को कोई न देख ले. वे जनता के दुख की बाड़बंदी करना चाह रहे हैं. 


आप अंदाजा लगाइए कि इस हाहाकार में भी प्रशासन कितना खलिहर और कितना क्रिएटिव और कितना क्रूर है!

-कृष्णकांत