बरिष्ठ पत्रकार शम्भूनाथ की फेसबुक वॉल से

महगाई की मार!
मैं आमतौर पर संडे की सुबह “मोर” जाता हूँ. वहां से आलू, प्याज और कुछ फल थोक में ले आता हूँ, जो हफ्ते भर चल जाते हैं. कुछ बिस्कुट वगैरह भी लेता हूँ. वहां के कर्मचारियों का स्वभाव मृदु रहता है, वे कुंजड़ों की तरह लड़ते नहीं. लेकिन इस बार अजीब लगा. सामान ट्राली में लाद कर जब मैं काउंटर पर पेमेंट के लिए गया, तो पाया कि चार में से तीन पर कोई आपरेटर नहीं है. एक पर जो लड़की है, वह अकेले इतने सारे ग्राहकों का लोड नहीं ले पा रही. कुछ चिड़चिड़ा भी रही है. मेरा नंबर बहुत पीछे था. मैंने उसे संबोधित करते हुए कहा, मैम! दूसरे काउंटरों पर किसी को भेज दीजिए. पर उसने अनसुना किया. पंद्रह मिनट बाद मेरा नंबर आया, तो मैंने पूछा, कि मैम कुछ परेशान हो! तभी चिड़चिड़ा भी रही हो. तब वह फट पड़ी. उसने बताया, कि 20 में से दस स्टाफ को कंपनी ने निकाल दिया है. खरीदी बढ़ी है, पर कंपनी घाटे का रोना रो रही है. हमें तो सात-आठ हज़ार रूपये महीने देने में कंपनी मरी जा रही है, लेकिन ऊपर वाले करोड़ों पा रहे हैं. अब खर्चों में कटौती के नाम पर छटनी की तलवार हम पर लटकी है. 
पच्चीस-एक साल की उस बच्ची ने इस मंदी से निपटने का एक हल अनजाने में ही सुझाया है. वह है, सब अपने खर्चों को कम करो. मंदी के इस दौर में राष्ट्रपति से लेकर चपरासी तक अपने-अपने खर्च घटाएं. राष्ट्रपति-भवन को पंडारा हाउस इलाके में शिफ्ट किया जा सकता है, और प्रधानमंत्री को भी वहीँ. मंत्रियों को बाबा खड़गसिंह मार्ग की मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में. सब की सुरक्षा भी घटाई जाए. सांसदों/विधायकों को वन रूम हास्टल दिए जाएं. तथा जितने दिन संसद की बैठकी हो, उन्हें उतने ही दिन का उनकी हाजिरी के हिसाब से वेतन दिया जाए. मौजूदा राष्ट्रपति भवन को तोड़ कर उसमें एम्स जैसा कोई अस्पताल खुले. विदेशी मेहमानों को हैदराबाद हाउस, बीकानेर हाउस आदि में ठहराया जाए. दूसरे प्रदेशों के मंत्रियों को रोज़-रोज़ यहाँ आने की जरूरत नहीं है. एकाध दिन के लिए आएं, तो रेल यात्री निवास की तरह उनके लिए कमरे बनवा दिए जाएं. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को एक-एक मारुति की ब्रीज़ा कार दी जाएं. तथा मंत्रियों को आल्टो. प्रधानमंत्री को साल में दो बार मेरठ के विद्यार्थी खादी भंडार से 500 रूपये के दो जोड़ी कुरते तथा इतने ही पाजामे दिए जाएं. राष्ट्रपति को बंद गले का सूट. 
जिलों में डीएम को तीन कमरे का एक मकान दिया जाए, और एक सेवादार. घर पर भोजन या तो वे स्वयं बनाएं अथवा उनकी बीवी. एक छोटी कार उसे भी. एसएसपी को भी इतना ही. थानेदार को बाइक. सब संकोची से चलें. न्यूनतम वेतन महीने का पांच हज़ार हो तो अधिकतम 50 हज़ार. जब तक अधिकतम की सीमा नहीं तय करोगे, तब तक न्यूनतम बेमानी है. सादगी और शिक्षा तथा ईमानदारी के संस्कार ऊपर से नीचे आते हैं. गरीब हो या अमीर, सबकी शिक्षा एक सामान और चिकित्सा भी. थोडा जोर ज़जी पर भी चले. रोज़ कोर्ट खुलेगी. तथा कोर्ट की भव्य इमारतों की जगह मल्टी स्टोरीज़ कोर्ट बनें, फिर वे चाहे लोअर कोर्ट्स हों या अपेक्स.
बाकी कुछ आप लोग भी सुझाएँ.