पतंगों का त्योहार जमघट अवध के आईने में


नवाबी शहर के पुराने मोहल्लों में रहने वाला शायद ही  ऐसा कोई बाशिंदा होगा, जिसने बचपन अथवा जवानी में  पतंगबाजी में हाथ न अजमाएं हो । यूं तो देश के तमाम शहर में पतंग उड़ाई जाती है। पतंग  का पेंच लड़ाना एवं पतंग काटने में जितनी महारत लखनऊ के पतंगबाजों  को हासिल है उतनी देश के किसी शहर के पतंगबाजों में नही है। क्योंकि अधिकतर पतंगबाज ढील का पेंच लड़ाते है ,जबकि लखनऊ के पतंगबाज डोर खींचकर लड़ाते हैं। जिसमे भी मंाझे की करामत शामिल रहती है। बरेली के साथ लखनऊवा मांझे को पतंगबाजों के बीच इज्जत बक्शी जाती है।
ग्ुजरात एवं राजस्थान में  जिस तरह मकरसंक्रंति में एवं,दिल्ली में पंद्रहा अगस्त को पतंग उड़ाने  की परम्परा है। वैसे ही लखनऊ में  दीवाली के दूसरे दिन पतंग उड़ाने की परम्परा है। यह परम्परा कब शुरू हुइं इसके बारे में शहर के बुजुर्गों के अलग अलग विचार हैं,कुछ का कहना है हिन्दु परम्परा के अनुसार परेवा के दिन वह कार्य नहीं किया जाता है जो रोजाना किये जाते है।इसलिए  लोगों ने इस दिन का अमोद प्रमोद के नाम कर दिया ।चूंकि उस समय मनोरंजन का प्रमुख माध्यम पतंग बाजी था। इसी प्रकार कुछ का कहना है। मान्यता है कार्तिक की अमावस्या की रात बुरी आत्मा आकाश में भ्रमण करती है उनको दूर भगाने के लिये परेवा में पतंग उड़ाई जाती है।आकाश में इसदिन पतंगो का जमावड़ा लग जाता है इसलिए  इसदिन को पतंगबाज जमघट कहते है।