एक फैसला जिस पर देश-दुनिया की थी नजर


देश की शीर्ष अदालत ने 9 नवंबर 19 को मंदिर मस्जिद विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुना कर साबित कर दिया है कि अभी भी हमारे देश में कानून का राज है।
सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह दोनों ही समुदाय के लोगों ने सहजता  पूर्वक स्वीकार किया है। अपने फैसले में विद्वान न्यायाधीशों ने कहा कि यह एक भूमि विवाद है और न्याय धार्मिक भावनाओं के आधार पर नहीं हुआ करते। सभी जानते हैं कि अयोध्या हिंदू धर्म से जुड़ी एक नगरी रही है तो निश्चित रूप से वहां का निर्माण भी उसी अनुरूप हुआ होगा। न्यायालय इस बात पर जोर दिया और पुरातत्व विभाग द्वारा कराई गई खुदाई को आधार माना जिसके अनुसार जो पुरा-अवशेष निकले वह मंदिर होने के संकेत दे रहे थे, इससे मस्जिद पक्ष अपना दावा सिद्ध करने में नाकाम रहा।
बताते चलें कि मंदिर मस्जिद विवाद की लौ  1934, 1949 और 1992 में प्रज्वलित हुई जो अभी तक धधक रही थी। 1966 में विश्व हिंदू परिषद ने इसे अपना एजेंडा बना लिया था और 1989 आते-आते बीजेपी ने इसे अपना चुनावी मुद्दा भी बना लिया।
 अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित भूमि मंदिर को देते हुए कहा कि सरकार वहां मंदिर बनाए साथ ही कहा कि अतीत की गलतियों को वर्तमान में सुधारने की कोशिश उचित नहीं है और इंगित किया कि 1934, 1949 और 1992 में पूजा स्थल के साथ हुई छेड़छाड़ गैरकानूनी थी।
1 हजार 45 प्रष्ठ के फैसले में माननीय न्यायालय ने 5 एकड़ भूमि मस्जिद के लिए देकर दूसरे पक्ष को उसकी समस्या का समाधान करने का कार्य किया है वहीं देश की जनता ने भी इस फैसले को दिल से आत्मसात किया है, अब सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह शीघ्र जन्म भूमि पर श्री राम जी का मंदिर बना कर इस मुद्दे को हमेशा के लिए पटाक्षेप करे।