गीता यथार्थ की फेसबुक वॉल से


एक औरत में बसी है कई सारी औरतें. 


बच्चे को स्कूल ड्रेस पहनाती मां, पति का टिफिन पैक करती पत्नी, 
फिर घड़ी देखती अपना पर्स तैयार करती, 
ऑफिस में हो गई पंच वाली अटेंडेंस का समय न निकल जाए, 
बॉस की कॉल्स और फाइलों के बीच देखती रहती है फ़ोन, स्कूल बस से बच्चा घर पहुंचा या नहीं,
भाग दौड़कर घर पहुंचती, सास को दवाई देती बहु..


फलाने की बेटी, फलाने की बहू, फलाने की पत्नी, फलाने की माँ... 
खुद के अस्तित्व से परे कर दी गई औरतें, 
रिश्तों के बिना,
अधूरी कर दी गई औरतें,  
... 
एक औरत में बसी है कई सारी औरतें. 
जब भी मिलना उससे, दिल खोलकर मिलना..