“गोडसे देशभक्त थे” वाक्य इतनी बार कहा जाएगा कि कल ये सामान्य लगने लगेगा - नितिन ठाकुर की फेसबुक वॉल से


इस बार प्रज्ञा ठाकुर ने संसद में फिर गोडसे को देशभक्त कहा। कम से कम मुझे कोई हैरानी नहीं है। ये देश एक हत्यारे के समर्थकों के हाथ पड़ चुका है। समर्थक भी बेहद शातिर और मौके के हिसाब से पैंतरे बदलनेवाले। अंदर ही अंदर एक दूसरे से सहमत मगर सार्वजनिक तौर पर अवसर तौलकर कभी डिफेंसिव और कभी एग्रेसिव रुख अपनाकर डिस्कोर्स बढ़ानेवाले।


एक नफरत से भरे बेहद आक्रोशित हत्यारे का ये समर्थक कबीला संसद पर हावी है और आज भले ही संसदीय कार्यवाही से कोई शब्द निकाल दिया जाए मगर तैयारी दरअसल कल की है। “गोडसे देशभक्त थे” वाक्य इतनी बार कहा जाएगा कि कल ये सामान्य लगने लगेगा और परसों तथ्य। उसके बाद दौर आएगा जब गांधी हत्या का विरोध करनेवाले ही देशद्रोही ठहरा दिए जाएंगे। ये बात समझना बेहद आसान है कि जो शख्स भारत का सबसे बड़ा प्रतिनिधि रहा उसका क़ातिल भले चाहे जो हो लेकिन वो देशभक्त नहीं हो सकता। गांधी हत्या से पहले वो चाहे जो रहा हो लेकिन उस एक कृत्य ने देश का सबसे बड़ा नुकसान किया और सवाल गांधी की देह का नहीं बल्कि देश की आत्मा का है, जिसे गोडसे की गोलियों ने छलनी किया और दुनिया में संदेश गया कि अहिंसा के सबसे बड़े संदेशवाहक देश में ही उसके पुजारी का कत्ल हो गया।


नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र में राजनीति के स्तर पर जो कुछ अपने दल से कराया उसे माफ कर भी दिया जाए तो समस्या नहीं है क्योंकि ये सब तो कांग्रेस ने भी खूब किया लेकिन गांधी की हत्या को जायज़ ठहराने या उनके हत्यारे को मान्यता देनेवालों के साथ यदि वो नरमी बरतते हैं तो देश उन्हें आज भले माफ कर दे पर पागलपन का उफान थमने के बाद उनके नायकत्व पर उतने ही छींटे होंगे जितने खूनी छींटे गोली लगने के बाद गांधी की सफेद धोती पर थे।