मुस्लिम संस्कृत शिक्षक और मीडिया


पिछले दिनों बीएचयू में संस्कृत अध्यापक के रूप में नियुक्त किए गए मुस्लिम सहायक प्राध्यापक फिरोज खान को लेकर बवाल मचा। बीएचयू के छात्रों ने फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर विरोध किया वह धरना देकर बैठ गए पढ़ाई का बहिष्कार किया और संबंधित विभाग में ताला लगा दिया। छात्रों का कहना था की मुस्लिम प्रोफेसर  मंजूर नहीं, वहीं बीएचयू प्रशासन का कहना था कि फिरोज खान की नियुक्ति एकदम नियमानुसार की गई है और चयन प्रक्रिया में आए सभी उम्मीदवारों से उन्होंने ज्यादा अंक पाए और उनकी नियुक्ति की गई।
मीडिया में खबरों में मामला उछला उछल जाने पर और बढ़ा और फिरोज वापस अपने घर जयपुर लौट गये उन्होंने कहा कि वे अब बापस नहीं आयेंगे।
अगर आप इस पूरे प्रकरण को देखें तो देश का मीडिया भी सिर्फ सतही जानकारी करके मामले को तूल पकड़ा देता है और न तो मामले का पूरा अध्ययन करता है और न ही रिसर्च। मीडिया की रिपोर्ट में कहा गया कि छात्र मुस्लिम संस्कृत शिक्षक का विरोध कर रहे हैं जो कि नाजायज है। मीडिया का तर्क था कि  बहुत से ऐसे मुस्लिम स्कॉलर हुए हैं जोकि संस्कृत का अध्ययन अध्यापन करते आए हैं और संस्कृत भाषा की समृद्धि के लिए कार्य करते रहे हैं। रसखान, अब्दुल रहीम खानखाना, अलबरूनी से लेकर अमीर खुसरो तक का उदाहरण मीडिया में दिया गया। उधर कुछ ऐसे हिंदू कवियों व  विद्वानों का भी जैसे फिराक गोरखपुरी आदि  का भी उदाहरण देकर हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब को उकेरा गया। लेकिन पूरे मामले को गहराई तक ना तो अखबार और ना ही चैनलों में देखा यहां तक कि बीबीसी की रिपोर्ट में भी सही तथ्यों को नही दिखाया गया सिर्फ भाषा को आगे लाकर हिंदू-मुस्लिम का खेल खेलना शुरू कर दिया।
जब की स्थिति यह थी कि वहां के छात्र संस्कृत शिक्षक को मुस्लिम होने का विरोध नहीं कर रहे उनका कहना है कि फिरोज खान संस्कृत बढ़ाएं उनका इससे कोई विरोध नहीं है। पर उनकी नियुक्ति उस विभाग में कर दी गई है जहां धर्म शिक्षा पढ़ाई जाती है। हमारा विरोध इस बात से है कि वह धर्म शिक्षा विभाग में शिक्षक नहीं हो सकते क्योंकि यहां हम हिंदू धर्म के अनुसार शिक्षा ग्रहण करते हैं जिसमें हिंदू पूजा पद्धति व कर्मकांड आदि की शिक्षा दी जाती है। और उनका आचार्य एक गैर हिंदू कैसे हो सकता है। जिसको शिखा नहीं है और जो जनेऊ धारण नहीं करता है वह संस्कृत भाषा का शिक्षक तो हो सकता है लेकिन धर्म शिक्षा का नहीं।
 मीडिया को  ऐसे मामले में रिपोर्टिंग करते समय सतही और ग्राउंड लेवल पर संपूर्ण जानकारी लेकर ही अपनी रिपोर्ट को आगे बढ़ाना चाहिए ताकि किसी  संवेदनशील मुद्दे पर क्या हकीकत है लोग जान सकें। मीडिया को धैर्य के साथ ही काम करना चाहिए ना की हड़बड़ाहट में जिससे कि बिना मतलब में ही गलतफहमीयों को जगह मिले और किसी मुद्दे की सही तस्वीर सामने न आ पाए।