अलीगढ़। अलीगढ़ के ऊपरकोट इलाके में स्थित जामा मस्जिद ऐसी है, जिसके निर्माण में देश में इतना ज्यादा सोना लगा है जो कि स्वर्ण मंदिर में लगे सोने से भी ज्यादा।
उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ की इस जामा मास्जिद का निर्माण मुगल बादशाह मुहम्मद शाह (1719-1728) के शासनकाल में कोल (अलीगढ ) के गवर्नर साबित खान जंगे बहादुर ने 1724 में कराया था। इसमें चार साल लगे और 1728 में मस्जिद बनकर तैयार हो पाई। ताजमहल बनाने वाले मुख्य इंजीनियरो मे से एक ईरान के अबू ईसा अफांदी के पोते ने इसका निर्माण किया है। ताजमहल और इस मस्जिद की कारीगरी में बहुत कुछ समानताए हैं। शहर के ऊपरकोट इलाके में 17 गुंबदों वाली यह मस्जिद है l यहां एकसाथ 5000 लोग नमाज पढ़ सकते हैं। यहां औरतों के लिए नमाज पढ़ने का अलग से इंतजाम है। इसे शहदरी (तीन दरी) कहते हैं।
देश की शायद यह पहली मस्जिद होगी, जहां 1857 की क्रान्ती के शहीदों की 73 कब्रें भी हैं। इसे गंज-ए-शहीदान (शहीदों की बस्ती) भी कहते हैं तीन सदी पुरानी इस मस्जिद में कई पीढ़ियां नमाज अदा कर चुकी हैं। 290 साल पहले बनी इस जामा मस्जिद में आठवीं पीढ़ी नमाज अदा कर रही है। मस्जिद में कुल 17 गुंबद हैं। करीब आठ से दस फुट लम्बी तीन मीनारे मुख्य गुंबद पर लगी हुई हैं। तीनों गुंबद के बराबर में बने एक-एक गुंबद पर छोटी छोटी तीन मीनारें और लगी हुई हैं। मस्जिद के गेट और चारों कोनों पर भी छोटी-छोटी मीनारें हैं। सभी शुदध सोने की बनी है । याद रहे की वो ताजमहल और हमायूँ मकबरे के मुख्य गुम्बद की मीनार हो य़ा स्वर्ण मंदिर, इन सब पर सोने की परत चढाई गयी है जबकी इस मास्जिद के गुम्बदो की मीनार को ठोस सोने से बनाया गया है एक अनुमान के मुताबिक इसके गुंबदों में ही 6 कुंतल सोना लगा है।
मस्जिद बलाई किले के शिखर पर स्थित है तथा यह स्थान शहर का उच्चतम बिंदु है। अपने स्थिति की वजह से, इसे शहर के सभी स्थानों से देखा जा सकता है। मस्जिद के भीतर छह स्थल हैं जहां लोग नमाज अदा कर सकते हैं। मस्जिद का जीर्णोद्धार कई दौर से गुजरा तथा यह कई वास्तु प्रभावों को दर्शाता है। सफेद गुंबद वाली संरचना तथा खूबसूरती से बने खम्भे मुस्लिम कला और संस्कृति की खास विशेषताएं हैं।