किसान आन्दोलन के निहितार्थ
दिल्ली पुलिस ने उन किसान नेताओं के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है, जिनके खिलाफ 26 जनवरी को हुई हिंसा और अराजकता के मामले में एफआईआर दर्ज हुए हैं। पुलिस इन लोगों के पासपोर्ट भी जब्त करेगी। आपको बता दें कि कुल 37 किसान नेताओं पर एफ आई आर  दर्ज हुए हैं।
किसान आन्दोलन को अब सरकार खत्म कराने के मूड में आ गयी है। इस परिपेक्ष्य में कुछ बरिष्ठ पत्रकारों की राय 
उन्माद और षडयंत्र की ‘गोधराछाप’ राजनीति पर टिकैत के आंसू भारी पड़ेंगे. मैं एक महीने से कह रहा हूं कि सरकार आग से खेल रही है, लेकिन सत्ता का अहंकार इन्हें ये सच देखने नहीं देता.

मीडिया के सामने टिकैत रो पड़े कि मेरे साथी किसानों को मारने की साजिश रची जा रही है, हमको फंसाया जा रहा है. इसके बाद बड़ी संख्या में समर्थक टिकैत के घर पहुंच गए हैं. कल सुबह महापंचायत बुला ली गई है. पश्चि‍मी उत्तर प्रदेश में रात में ही हजारों लोग सड़कों पर आ गए हैं और जगह-जगह हाईवे जाम कर रहे हैं. उनका कहना है कि टिकैत से पहले हमको गिरफ्तार करो.

बॉर्डर पर बैठे किसानों ने अपने अपने गांवों से और लोगों को बुला लिया है. वे कह रहे हैं कि सुबह तक रुको, बॉर्डर भर जाएगा. लोग रात में ही लोग गाजीपुर बॉर्डर के लिए निकल पड़े हैं.

अरअसल, दो कौड़ी का शूटर अगर नेता बन जाए तो वह भी समझता है कि जनता भेड़ बकरी है. लेकिन ये जनता सब जानती है. ये जानती है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को दिल्ली में परिंदा भी पर नहीं मार सकता. जो षडयंत्रकारी भेजा गया था, वह भी उन्होंने देखा है. उन्होंने ये भी देखा है कि 26 जनवरी को फोर्स नहीं थी, लेकिन आज मौजूद है. उन्होंने ये भी देखा कि झंडा फहराने और भीड़ की अगुआई करने वाले आराम से अपना काम करके चले गए. इन सबसे ज्यादा किसानों ने जिंदगी भर अपने नेताओं को देखा है.

आपके षडयंत्र करने से कोई अपने बीच लोगों को देशद्रोही नहीं मान लेगा.

अगर किसानों का दमन किया गया तो सरकार अपनी ताबूत में आखि‍री कील ठोंक लेगी. एक अप्रिय घटना पर लोग बैकफुट पर आ सकते हैं, लेकिन जो लाखों किसान आंदोलन में शामिल हैं, वे अपने किसी नेता को देशद्रोही नहीं मान सकते. किसी कीमत पर नहीं. देश का निर्माण नेता नहीं करता, देश का निर्माण देश की जनता करती है. जनता देश की मालिक है और किसान आज भी इस देश की रीढ़ हैं जिसे नोटबंदी और जीएसटी जैसी ऐतिहासिक मूर्खताएं भी तोड़ नहीं पाई हैं.

सस्ते गंजेडि़यों! बौराओ मत, होश में आ जाओ.
-कृष्ण कन्त
देश देख रहा है कि आंदोलनों से कैसे “निपटा” जाता है. ये बहुत दुखद है. एक घटना के बहाने कैसे पूरे आंदोलन को अवैध ठहराया जा सकता है? मंडी और एमएसपी के सवाल चर्चा से बाहर कैसे हो गए? सिर्फ़ लालकिला पर आकर सब कैसे सिमट गया? क्या एक दिन की घटना के कारण पूरा मंदिर आंदोलन ऐसे ही अवैध और अनुचित ठहराया गया था? यदि वो नहीं तो ये भी नहीं.
-नीतिन ठाकुर
एक और सवाल पर गिरीश मालवीय कहते है
आप कहते हो कि बाकि किसान इनके साथ क्यों नहीं आते ?........मै बताता हूँ क्यों नहीं आते !.....
19 जनवरी को राजधानी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले में ट्रैक्टर रखने वाले कई किसानों को नोटिस दिया गया था, जिसमें उनसे 50,000 से लेकर 10 लाख तक का पर्सनल बॉन्ड और इतने की ही श्योरिटी जमा करने को कहा गया, सीतापुर में ऐसे नोटिस सैकड़ों किसानों को दिए गए ताकि वो ट्रैक्टर रैली में शामिल होने के लिए निकल न पड़े 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी की योगी सरकार से दो फरवरी तक इस बारे में जवाब मांगा है कि आखिर किस आधार पर गरीब किसानों को 'ब्रीच ऑफ पीस' के यह नोटिस भेजे गए थे.दरअसल कोर्ट ने सोशल एक्टिविस्ट अरुंधति धुरु की एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने बताया है कि सीतापुर में ऐसे नोटिस सैकड़ों किसानों को दिए गए हैं. मामले की सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच को याचिका में बताया गया है कि 'राज्य सरकार की ओर से जारी ये नोटिस न तो बस आधारहीन हैं, बल्कि किसानों के मूल अधिकार भी छीनने वाला है क्योंकि पुलिस इन किसानों के घरों को घेरकर बैठी हुई है और वो अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.'

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया है कि पर्सनल बॉन्ड और श्योरिटी की रकम हद से भी ज्यादा थी और गरीब किसानों से नहीं मांगी जा सकती थी, वो भी इन्हें बस स्थानीय पुलिसकर्मियों के रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया था और किसानों को अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं मिला था.

इस हद तक जाकर आंदोलन को कुचलने की कोशिश हो रही है और आप पूछते हो कि देश का किसान पंजाब हरियाणा के किसानो के साथ क्यों नही है ?

गिरीश मालवीय