वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से


 वे ठीक कह रहे हैं. मां गंगा भी गवाह हैं. कहीं कोई नहीं मरा था. देश में आक्सीजन की कोई कमी नहीं ​थी. अस्पताल, बिस्तर, दवा, इंजेक्शन की कोई कमी नहीं थी. श्मशान पर सामान्य से 50 गुना लाशें नहीं थीं. लोग ताबूतों पर सवार होकर शौकिया वॉक करने गए थे. लोग शौकिया मरे थे. 


हमारी सरकार बड़ी मासूम है. नागरिक ही सब धूर्त हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी क्रूरता को बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त है. लोग इन्हें बदनाम करने के लिए खुद ही लाशें बनकर तैर रहे थे. जो दिख रही थीं, वे लाशें नहीं थीं. वे लाशनुमा षडयंत्रकारी थे. दिल्ली से लखनऊ तक जो चीत्कार मचा हुआ था, वह सब झूठ था. पूरे देश से जो एसओएस कॉल आ रही थीं, वे सब सरकार को बदनाम करने की साजिश थीं. 


किसान आंदोलन से लेकर महामारी तक, सीएए नाम के तालिबानी कानून से लेकर जासूसी तक, सब अंतरराष्ट्रीय साजिश है और इसमें पूरी भारत की जनता शामिल है. बस ये शेषनाग बनकर किसी तरह अपने प्रताप से धरती को रोके हुए हैं. ये न पैदा हुए होते तो इस धरती का क्या होता! राम राम! 


बात बात पर इनको लगता है कि इनकी नाक कटने के लिए अब भी कुछ बाकी है और इसके लिए देश के आम नागरिक भी षडयंत्र कर रहे हैं. महामारी आई तो कोई सिरफिरा वजीर बोला था कि ट्विटर पर मदद मांगोगे तो संपत्ति जब्त कर लेंगे, घर ढहा देंगे, जेल में डाल देंगे वगैरह वगैरह. वो तो कोर्ट ने साजिश कर दी, वरना जाने कितने मुर्दे कब्र से मुकदमा लड़ रहे होते! 


तमाम दुष्ट तो इसके बाद भी नहीं माने. ये बड़े नाम वाले थे, इनको सबने मिलकर बदनाम कर दिया. इन्होंने तो पिछले डेढ़ साल में गली गली अस्पताल बनवा दिए हैं और हर अस्पताल में तमाम आक्सीजन प्लांट भी लगा दिए हैं. वे सही कह रहे हैं. आक्सीजन के बिना, दवाई बिना, अस्पताल बिना कहीं कोई नहीं मरा था. आक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई. वे संसद के अंदर कह रहे हैं. संसद लोकतंत्र का मंदिर है. वे मंदिर और मजहब के अकेले ठेकेदार हैं. वे कह रहे हैं तो ठीक ही कह रहे होंगे.


ऐसी निर्लज्जता और ऐसी क्रूरता का बखान कीजिए, गर्व कीजिए, तारीफ कीजिए. कसीदे पढ़िए. ये इतने महान हैं कि इनके वक्त में पैदा होने के लिए भी इनको धन्यवाद दीजिए. हर सांस के लिए थैंक्यू बोलिए. अपने वजूद का जर्रा जर्रा इनका भजन करने में लगा दीजिए. यही आपकी नियति है.