अमिताभ ठाकुर से मिलने पर भी पाबंदी है क्या भाई! दिल्ली से लखनऊ जेल गया लेकिन बिना मिले निराश हो लौटना पड़ा!
यूपी में सपा बसपा भाजपा सभी सरकारों के समय भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने वाले और राजकाज में ट्रांसपैरेंसी लाने के लिए प्रयासरत भाई अमिताभ ठाकुर से मिलने आज लखनऊ जेल गया लेकिन योगी शासन की दमनकारी-तानाशाही कार्यप्रणाली को जी जान से आगे बढ़ाने में जुटी नौकरशाही ने मुझे अमिताभ जी से मिलने से रोक दिया।
हवाला दिया गया कि एक हफ़्ते में एक व्यक्ति मिल सकता है लेकिन नियमों के तहत हफ़्ते भर में दो व्यक्ति मिल सकते हैं। कई अफ़सरों से पैरवी लगाने की कोशिश की लेकिन अमिताभ ठाकुर जैसे ‘ख़ूँख़ार’ क़ैदी से कोई मिलवाने के लिए तैयार नहीं हुआ।
कई लोग नाम न बताने की शर्त पर कहते मिले कि अमिताभ ठाकुर डायरेक्ट सीएम के क़ैदी हैं, इसलिए उनकी हर वक्त मानिटरिंग होती है। कौन मिलता है क्या बात होती है, इस सब पर नज़र रखी जाती है।
वैसे एक रोज़ पहले यानि बीते कल अमिताभ जी से उनकी पत्नी नूतन जी मिलकर आईं। इनकी मुलाक़ात बेहद दूर से कराई जाती है जिससे बहुत तेज तेज बोलकर बात करनी पड़ती है। कोई फल वग़ैरह जब अमिताभ जी को दिया जाता है तो उसे उन तक दो दिनों बाद पहुँचाया जाता है। ये जाने किस नियम के तहत होता है। ऐसे में वे फल सड़ कर बेकार हो चुके होते हैं।
यह देख अमिताभ ठाकुर ने खुद ही पत्नी नूतन को मना कर दिया कि वे फल आदि न लाया करें। अमिताभ ठाकुर कलम और काग़ज़ की माँग करते हैं जो उन तक नूतन जी पहुँचा देती हैं।
अमिताभ ठाकुर अपना केस खुद लड़ रहे हैं। इसके लिए वे अध्ययन व लेखन का काम लगातार जारी रखते हैं।
मुझे अमिताभ ठाकुर से न मिलने दिए जाने से निराशा हुई। मैं उन्हें देने के लिए एक किताब ले गया था जिसे उन तक जेल अधीक्षक आशीष तिवारी ने पहुँचवा दिया। ये किताब कई कारणों से मुझे बहुत पसंद है।
एक अमेरिकी नागरिक ने लम्बे समय तक भारत में संत जीवन बिताने के बाद जो ये आत्मकथा लिखी है, वो मुग्ध करने वाली है। ये किताब प्रकृति ईश्वर चेतना ब्रम्हाण्ड को समझने बूझने का एक नया सिरा समझाती है।
जुझारू अमिताभ ठाकुर को प्रकृति ने माध्यम बनाया है क्रूर शासकों से मुक़ाबिल होने के लिए। जेल में बंद कर योगी सरकार ने अमिताभ ठाकुर का क़द काफ़ी बढ़ा दिया है।
उम्मीद करता हूँ कि अगले कुछ दिनों में मुझे अमिताभ ठाकुर से जेल में मिलने का मौक़ा मिल पाएगा तो उनसे कुछ ज़रूरी बातचीत कर सकूँगा और उनकी मन:स्थिति को भी समझ सकूँगा। आप सबसे अनुरोध है कि इस पोस्ट को शेयर फ़ॉर्वर्ड करें जिससे एक क्रूर शासक द्वारा एक ईमानदार अफ़सर को प्रताड़ित किए जाने का ये प्रकरण पढ़े लिखे लोगों तक ज़्यादा से ज़्यादा पहुँच सके।
बाक़ी लखनऊ में आज जेल से निराश लौटने के बाद पहली बार मेट्रो यात्रा की। एक मित्र से मिलने जानकीपुरम विस्तार की तरफ़ गया था। वहाँ से लौटा मेट्रो से। मुंशी पुलिया से अमौसी तक। मेट्रो में बैठने पर एकदम से दिल्ली ncr वाला लुक फ़ील आ गया।
लेखक बरिष्ठ पत्रकार हैं