गर्भ ग्रह के नियमों के विरुद्ध आचरण


 कृष्णकांत

धर्म जनता से अलग नहीं है। वह जनता की ही आस्था है। अगर जनता का पतन हो रहा है, देश का आर्थिक पतन हो रहा है तो धर्म के उत्थान की बात सिर्फ उल्लू बनाने की राष्ट्रीय परियोजना है। 

पिछले कुछ महीनों में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं। 21 राज्यों के पास मनरेगा का बजट माइनस में चला गया है। अर्थव्यवस्था माइइस मे गोते लगा रही है। गरीबी बढ़ रही है। बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है। महंगाई ने जनता को इस लायक नहीं छोड़ा है कि वह दीवाली पर जीभर दिया जला सके। लेकिन एक नेता 11 लाख दीये जला रहा है। 

जनता को इस लायक नहीं छोड़ा कि वह आराम से अपना उदराभिषेक यानी पेटपूजा कर सके। लेकिन एक नेता रुद्राभिषेक कर रहा है। वे कुछ योजनाओं का उद्घाटन, शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण और धर्म-आस्था की खिचड़ी पका रहे हैं। उन्हें जनता ने देश सेवा के लिए चुना, लेकिन वे इसमें बुरी तरह असफल हैं। इसलिए धर्म को ढाल बना रहे हैं। वे पुजारियों और संतों का चोला ओढ़कर आपसे कहना चाहते हैं कि हमारी असफलता पर बात मत करो। इस पर बात करो कि मैं कितना बड़ा भक्त हूं। 

वे अपनी आस्था के लिए ऐसा नहीं करते। वे भगवान भोलेनाथ के धाम में मंदिर के अंदर भी कैमरा लेकर जाते हैं। वे एकांत गुफा में भी कैमरा ले जाते हैं, उसका प्रसारण होता है ताकि दुनिया को दिखा सकें। कहा जा रहा है कि धर्म का उत्थान हो रहा है। 

धर्म का उत्थान तो इसमें होगा कि आम जनता भी जब चाहे केदारनाथ धाम जाकर रुद्राभिषेक कर सके। वे जनता को अपंग बना रहे हैं, अपनी तानाशाही को जनता पर थोप कर दावा कर रहे हैं कि धर्म का और हिंदुओं का उत्थान हो रहा है। 

वे अपनी आस्था के लिए ऐसा करते तो कोई दिक्कत नहीं थी। वे मंदिर में कैमरा ले जाकर पूजा भी आपको उल्लू बनाने के लिए कर रहे हैं ताकि आपको लगे कि वे बड़े धार्मिक हैं, वे आप जैसे हैं, वे सच्चे हिंदू हैं। 

उनकी ड्यूटी क्या है? अपने को सच्चा हिंदू साबित करना या इस देश को प्रगति के रास्ते पर लाना? पिछले दो साल में आर्थिक हालात सुधारने के क्या उपाय हुए? वे चुने गए हैं देश चलाने के लिए, वे आस्था और पाखंड का कारोबार चला रहे हैं। 

इसी तरह एक दिल्ली वाले भूतपूर्व क्रांतिकारी सर जी हैं। कहते हैं कि मैं सत्ता में आऊंगा तो सबको चारधाम यात्रा कराऊंगा। आप इस वादे पर खुश होते हैं। वे नहीं कहते कि यूपी को ऐसा प्रदेश बनना चाहिए जहां दोबारा कोरोना आ जाए तो गंगा की धारा और गंगा के तट लाशों से न पट जाएं। वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें भरोसा है कि हम सब धर्म के नाम पर ठगे जा सकते हैं। 

सोचिए कि मैं नौकरी करता हूं। मैं अगर चाहूं तो अपनी एक-दो महीने की सैलरी बचाकर पूरा भारत घूम सकता हूं। मुझे ज़रूरत नौकरी की है या सरकारी तीर्थयात्रा योजना की है? मेरे पास नौकरी है तो अपने माता-पिता को भी चारोंधाम तीर्थयात्रा ले जा सकता हूं। 

अगर जनता की माली हालत सही है तो वे तीर्थ और हज अपने से कर लेंगे। सरकार को इससे क्या लेना देना? 

लेकिन नेता चारधाम यात्रा कराने का वादा करते घूम रहे हैं। वे मंदिर, मस्जिद, हिंदू, मुसलमान से आगे न सोच रहे हैं और न आपको सोचने देना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि इस तरह धार्मिक इवेंट से आप प्रसन्न होंगे और उन्हें वोट देंगे। पूरे देश का मीडिया इसपर सवाल नहीं करता, कवरेज करता है। 

मेरे किसान पिता के सीमित संसाधनों और सरकारी शिक्षा व्यवस्था की कृपा से मैं पढ़ सका और अब नौकरी कर रहा हूं। मैं जहां चाहूं घूम सकता हूं। दर्शन, पूजा, कर्मकांड, अध्यात्म सब सम्पन्न कर सकता हूं। मेरे जैसे युवाओं को शिक्षा और रोजगार चाहिए, वे कह रहे हैं तीर्थयात्रा कराएंगे। 

नेता हमारी हालत सुधारने की जगह हमें धर्म-कर्म, आस्था और सियासी पाखंड में क्यों उलझा रहे हैं? आप जनता को मानसिक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाइए। धर्म और संस्कृति अपने आप मजबूत हो जाएंगे। लेकिन इस विचार में चुनावी उन्माद नहीं है, इसलिए ऐसी बातें आपको भी अच्छी नहीं लगतीं। 

नेताओं का 90 फीसदी धंधा इसलिए चल रहा है क्योंकि आप हर कदम पर मूर्ख बनने को राजी हैं। वह समय कब आएगा जब हम आप उल्लू बनने से इनकार करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)