इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज हुआ करते थे माननीय जगमोहन लाल सिन्हा। मामला 1971 के चुनाव का था जिसमें रायबरेली की सीट पर समाजवादी नेता राजनारायण को इंदिरा गांधी ने आसानी से हरा दिया था। जिसके बाद राजनारायण ने अदालत में उनके खिलाफ चुनावों में घपले बाजी का आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर कर दी थी।
हर जुबान पर एक ही सवाल था कि क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट इंदिरा गांधी को चुनावों में गलत तरीके अख्तियार करने का दोषी ठहरायेगा? क्या चुनाव के नतीजे बदले जा सकते हैं?
जब सिन्हा जी की अदालत ने फैसला सुनाया तो फैसला उससे भी खराब निकला जिसका इंदिरा समर्थकों को डर था।
अदालत ने राजनारायण की कई शिकायतों को खारिज कर दिया था लेकिन इंदिरा जी के चुनाव प्रचार करने वालों में से एक यशपाल कपूर को सरकारी नौकरी में रहते हुए भी चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने का दोषी पाया गया।यह भी साबित हो गया कि उत्तर प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों ने इंदिरा गांधी की चुनावी बैठकों के वक्त मंच तैयार करने में मदद की थी।
इसी आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी पर चुनाव प्रचार के दौरान घपलेबाजी का दोष पाया और चुनाव नतीजे को खारिज कर दिया।
इस घटना के बाद देश में आपातकाल लगा यह सब जानते हैं। लेकिन जो बात जानकर हम चुप रहते हैं मैं उसकी बात कर रहा हूं। आज जब कभी लोकसभा या विधानसभा चुनाव होते हैं साफ नजर आता है कि न केवल सरकारी कर्मचारी बल्कि समूचा चुनाव आयोग भाजपा के कहे अनुसार चुनाव की तारीख निर्धारित करता है। प्रधानमंत्री की सहूलियत के हिसाब से चरण निर्धारित करता है।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने को हैं। प्रदेश के सारे अधिकारी इस वक्त भारतीय जनता पार्टी की रैलियों का इंतजाम करने में लगे हैं। बाकायदे कलेक्टर बसों की व्यवस्था कर रहे हैं। अदालतें खामोश हैं, सिन्हा जैसे जज कहीं नही दिखते। इसीलिये कहता हूं यह आपातकाल ज्यादा भयावह ज्यादा अंधेरे से भरा हुआ है।
आवेश तिवारी
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)