रवीश कुमार ने ऐसा कुछ नहीं लिखा,अपना दिमाग कूड़ादान न बनायें : कृष्ण कान्त



कुछ लोग किसी व्यक्ति या समुदाय से इतनी नफरत करते हैं कि अंधे हो जाते हैं। उनकी दृष्टि पर नफरत का मोटा पर्दा पड़ जाता है। उन्हें सच-झूठ में फर्क पता चलना बंद हो जाता है। वे नफरत की काल्पनिक दुनिया में जीने लगते हैं। क्या आपके आसपास भी ऐसे लोग हैं? 

कभी-कभी झूठ फैलाना एक गलती हो सकती है। लेकिन नियोजित और संगठित झूठ फैलाना मेहनत का काम है। मैंने लगभग तीन साल फैक्ट चेक टीम के साथ काम किया है। मैं ये बात समझता हूं कि स्वनामधन्य राष्ट्रवादी  गिरोह का झूठ बेहद नियोजित होता है। संगठित ढंग से फैलाये जा रहे झूठ को पकड़ने के बाद समझ में आता है कि जिसने ये झूठ रचा, उसके पास एक शातिर दिमाग है जो बहुत ही विनाशकारी कल्पनाएं कर सकता है। सीरिया, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के विजुअल को यूपी-बिहार का दिखाकर लोगों को यकीन दिला देना आसान काम नहीं है। 

फैक्ट चेक स्टोरीज पढ़कर आप भी ये अंदाजा लगा सकते हैं कि इसके पीछे एक मशीनरी काम करती है। जो हुआ ही नहीं है, वैसा होने का यकीन दिलाया जाता है। ऐसे झूठ फैलाने के लिए किसी घटना के संदर्भ में क्रूरतम कल्पना करनी पड़ती है। ऐसे लोग भी 18 घण्टे मेहनत करते होंगे। कोई 18 घण्टे मेहनत करने वाला हमेशा गलत दिशा में मेहनत करे तो समझिए कि वह बेहद विध्वंसक आदमी है। सोचिए कि जो बात रवीश कुमार ने कभी कही ही नहीं, उसकी कल्पना कर ली गई और रवीश कुमार को गालियां भी पड़ने लगीं। 

हमारी सेना के सर्वोच्च अधिकारी समेत 13 जांबाज़ों की जान चली गई। यह खबर स्तब्ध कर देने वाली थी। इस बीच किसने ये कल्पना की होगी कि झकझोर देने वाली इस खबर के बहाने रवीश कुमार को फंसाया जा सकता है या गाली दिलवाई जा सकती है? 

इस समय भारत में समाज को बांटने का सबसे घातक हथियार फेक न्यूज है। जिसे आप अच्छे से नहीं जानते, जिसपर आप भरोसा नहीं कर सकते, जो अक्सर बकवास लिख मारता हो, जो अकारण किसी के प्रति नफरत का इजहार करता रहता हो, वह भी इस महामारी का मारा हो सकता है। 

सबकी वॉल पर मौजूद कचरा अपने दिमाग में न भरें। आपका दिमाग अनमोल है। उसे कूड़ेदान न बनाएं। आपको क्या पढ़ना चाहिए, इसका चुनाव सावधानी से करें। 

पुनश्च: फेक न्यूज फैक्टरी के कारिंदों के लिए रवीश ने अच्छी सलाह दी है। दो रुपये में ईमान न बेचें, टमाटर बेचें, ज्यादा कमाई होगी।
(लेखक बरिष्ठ पत्रकार हैं)