केशव कृपाल श्री केशव
आज के दिन ३० मई को कोलकाता से पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने साल १८२६ में हिंदी का पहला समाचार पत्र निकाला था, जिसका नाम था "उदन्त मार्तण्ड"। इसका अर्थ होता है उगता हुआ सूर्य। पंडित जी मूलतः कानपुर के निवासी अधिवक्ता थे और अपने हिंदी प्रेम तथा स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरित होकर कोलकाता शहर के एक गली में अपनी साधना को मूर्त रूप दिया।
उस समय की हिंदी ब्रजभाषा मिश्रित होती थी। हालांकि यह अखबार इसी साल के दिसंबर महीने में बंद भी हो गया। लेकिन इस उगते हुए सूर्य की आहट ने हिंदी पत्रकारिता की दुंदुभि बजा दी थी। यही आज अपने विस्तीर्ण आयाम के साथ जनजीवन को प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है। निस्संदेह बाद में भी जितने हिंदी के अखबार निकले, ज्यादातर संघर्ष और साधन के अभाव में प्रारंभ हुए तथा मिशन-बेस्ड थे। भले वही अब बड़े-बड़े उद्योग की तरह सफलता के शिखर पर विराजमान हैं।
यह तो निश्चित है आज की हिंदी पत्रकारिता "उदन्त मार्तण्ड" की कर्जदार है लेकिन उसका कर्ज उतारने में विफल-सी है। खासतौर से जब से पत्रकारिता कागज के पन्नों से गुजरते हुए चैनल के पर्दों पर आई है, अपना लोक-लाज खोती जा रही है। टीआरपी और विज्ञापनों की भूख, एंकर एंकरानियों की चीखती हुई असभ्य आवाज और एजेंडे पर आधारित प्रस्तुति ने "उदन्त मार्तण्ड" की स्पिरिट को "उद्दण्ड" "मार्तण्ड" में तब्दील कर दिया है।
लेकिन अभी भी ३० मई का सपना बेअसर नहीं हुआ है। आज विकट परिस्थितियों में भी छोटे-छोटे अखबार, छोटे चैनल, यूट्यूब रिपोर्टिंग और सोशल मीडिया के लाखों निष्पक्ष लेखक और चिंतक हिंदी पत्रकारिता की आबरू बचाने में समर्थ हैं। दो टूक बात कहनी हो तो अब छोटे लोगों के हाथ में ही बड़े संकल्प जिंदा और महफूज हैं।