अग्निपथ की अग्नि परीक्षा

राजेन्द्र मिश्र 



मोदी सरकार की अग्निपथ योजना अग्निपरीक्षा काल से गुजर रही है। यह तो अब निश्चित हो गया है कि जिस प्रकार से सरकार के नोटबंदी, जीएसटी, व आकस्मिक लॉकडाउन के फैसले के परिणाम  देश को भुगतने पड़े। क्योंकि नोटबंदी में आरबीआई को भरोसे में नहीं लिया गया और जीएसटी लागू करते समय उसके स्टेकहोल्डर व्यापारियों से विमर्श नहीं किया गया। संपूर्ण लॉकडाउन लगाते समय यह नहीं सोचा गया की एक स्थान पर बसे लोग कैसे अपने ठिकानों पर लौट पाएंगे। यही नहीं भीषण विरोध के परिणाम स्वरुप भूमि बिल व किसान कानून सरकार को वापस लेने पड़े उससे प्रतीत होता है कि यह सरकार बिना किसी विचार विमर्श व रिसर्च के नियम कानून बनाने की आदी हो चुकी है।

चूँकि इस राजनैतिक सत्ता को पता है कि राष्ट्रभक्ति व धर्म का अफीमी नशा उसके क्रियाकलापों को आगे बढ़ाने में सहायक होगा और इसलिए यह तानाशाही पूर्वक अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश करती है जिसका खामियाजा देश की जनता को भुगतना पड़ता है।
अग्निपथ योजना को लागू करते समय यह नहीं सोचा गया कि नियमित सेनाभर्ती के इच्छुक युवाओं पर क्या बीतेगी। अब इस योजना का भारी विरोध हो रहा है लेकिन सरकार इसको दबाने का भरसक प्रयास कर है। यह पहली बार देखने में आया है कि सरकार की करतूतों का जवाब सेना के प्रमुखों को देना पड़ रहा है, सरकार उनके पीछे मुंह छुपाए खड़ी है और गोदी मीडिया व भाजपा के आईटी सेल जरूर सक्रिय हो गये हैं तथा अपने अपने हिसाब से अग्निपथ योजना के फायदे गिना रहे हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश का बेरोजगार युवा अब इनके झांसे में आने वाला नहीं है क्योंकि वह युवा सेना में सिर्फ रोजगार पाने के लिए नहीं जाता बल्कि उसके अंदर देश सेवा करने का एक जज्बा होता है और जिसके लिए वह अपनी जान तक कुर्बान करता है। अग्निपथ योजना की अच्छाई के  एवज में कैसे-कैसे तर्क दिए जा रहे हैं जिन पर आप खुद ही विचार कर देखिए कि लोकतंत्र में यह लोक की राय है  और  कुछ और ही है। 
 
बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं कि 
"सेना की ट्रेनिंग में पहला डिसिप्लीन, दूसरा आज्ञा का पालन करना है. जब वो (अग्निवीर) ट्रेनिंग लेगा और चार साल की सेवा के बाद निकलेगा. साढ़े 17 साल से 23 साल की उम्र... यदि वो 21 साल की उम्र में भी भर्ती होता है, चार साल काम करता है तो 25 साल. 25 साल की उम्र में जब वो बाहर निकलेगा तो उसके हाथ में 11 लाख रुपये होंगे. और वो छाती पर अग्निवीर का तमगा लगाकर घूमेगा. किसी भी... मुझे अगर इस ऑफ़िस में, बीजेपी के ऑफ़िस में सिक्योरिटी रखना है तो मैं अग्निवीर को प्राथमिकता दूंगा."
 
एक और केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी कह रहे हैं कि, 
"अग्निवीरों को ड्राइवर, इलेक्ट्रिशियन, धोबी, नाई आदि की ट्रेनिंग दी जाएगी, जिससे यह चार साल बाद यह सब काम भी अपना सकते हैं।"
इसका मतलब हुआ कि, वे न तो, सैनिक के पद पर, भर्ती हो रहे हैं और न ही वे सैनिक हैं। 
कैलाश विजयवर्गीय और किशन रेड्डी के इन बयानो पर कड़ी राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।

लेखक व भूतपूर्व आईपीएस विजय शंकर सिंह अपने आलेख में लिखते हैं कि
फासिस्ट और जनविरोधी सत्ताएं अक्सर सेना के शौर्य, बलिदान, देशभक्ति आदि उदात्त भावों का दोहन करती हैं। यह इतिहास से जाना और सीखा जा सकता है। पर जो राज्य, लोकतंत्र और लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर प्रतिबद्ध और शासित है में, यह जान लेना जरूरी है कि, सेना, सुप्रीम नहीं होती है। भारत कोई फासिस्ट देश और न ही किसी फासिस्ट सरकार के आधीन है। यहां, सेना भी सरकार के आधीन एक सिस्टम है और देश की रक्षा के लिए संविधान के अंतर्गत गठित है। वह सरकार और संसद के आधीन है। उसे इन सबसे अलग कर के देखना घातक होगा। देश की जनता के टैक्स से उसका बजट तय होता है। उस बजट की ऑडिटिंग होती है और उसके खर्चे संसद की लोक लेखा समिति के समक्ष रखे जाते है। सेना द्वारा लिए गए कतिपय प्रशासनिक निर्णय भी न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत आते हैं। संसद में उस पर सवाल उठाए जा सकते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, NHRC सैनिक कृत्यों की जांच कर सकता है।

भारत में ही, सरकार, एक नौसेनाध्यक्ष को बर्खास्त भी कर चुकी है। यह किस्सा, अटल बिहारी बाजपेई की सरकार के समय का है, जब जॉर्ज फर्नांडिस रक्षा मंत्री थे। सेना की कठिन और जोखिम भरी परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें जरूरी संसाधन, सुविधाएं और आयुध आदि सरकार उपलब्ध कराती है। सेना के आधुनिकीकरण की एक नियमित प्रक्रिया है, उसके अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट संस्थान हैं, उनके प्रशिक्षण को आधुनिक रूप से अद्यावधिक किया भी जाता है, दुनिया के अन्य देशों के साथ संयुक्त रूप से सैन्य अभ्यास भी होते रहते हैं, और भारतीय सेना संभवतः दुनिया की अकेली सेना है जो सियाचिन के माइनस 30 डिग्री सेल्सियस से लेकर राजस्थान के रेतीले इलाकों की 48 डिग्री सेल्सियस पर दुश्मन से युद्ध करती है और विजय ध्वज फहराती है। दुनियाभर में हमारी सेनायें उन सेनाओं में शुमार होती हैं, जिसका स्वरूप अब तक अराजनीतिक बना हुआ है और इसे आगे भी बनाए रखना ही उचित होगा।

सेना और देशभक्ति का राग बार बार अलाप कर सरकार अपने गवर्नेंस की खामियां नही छुपा सकती है। सेना का प्रोफेशनल स्वरूप, देशहित में बनाए रखना अनिवार्य होगा। जिस तरह कभी नोटबंदी को, देश की सभी आर्थिक समस्याओं का अनिवार्य निदान समझा जाता था, वैसे ही आज अग्निपथ, देश की बेरोजगारी समस्या की रामबाण औषधि समझी जा रही है। ऑर्केस्ट्रा के बैंड मास्टर ने डंडी लहराई, धुन छेड़ी, साज बजने लगे, साजिंदे डोलने लगे।
( लेखक टीवी पत्रकार हैं )