पत्रकार को डरना नहीं लिखना चाहिए !
कृष्ण कान्त 
कल मैं कैब से सफर कर रहा था। ट्विटर देखते हुए अचानक मेरे मोबाइल पर एक क्लिपिंग चल गई जो महंगाई पर थी। कुछ सेकंड में मैंने उसे बंद किया। उस क्लिपिंग को सुनकर ड्राइवर मुस्कुराया और बोला बात तो सही है महंगाई अब सर से ऊपर चली गई है।

इसके बाद वह अपने घर का बजट समझाने लगा। उसकी बातें खासकर गैस सिलेंडर पर केंद्रित थीं कि कैसे पिछले 1 साल के अंदर गैस का दाम 300 के आसपास बढ़ गया है। साथ ही साथ उन्होंने अनाज, दूध, दही, पनीर वगैरह पर लगी जीएसटी का भी जिक्र किया।

उनकी बातों से साफ था कि उनके लिए घर चलाना काफी मुश्किल हो रहा है। फिर उन्होंने पूछा कि कांग्रेस ने अभी महंगाई पर प्रदर्शन किया, आखिर विपक्ष के विरोध के बावजूद सरकार पर कोई असर क्यों नहीं पड़ रहा है? मीडिया जिस तरह से महंगाई के मुद्दे को दिखाना चाहिए वह क्यों नहीं दिखा रहा है? 
मैंने कहा- क्योंकि मीडिया बहुत दबाव में है पत्रकारों की गलती नहीं है। यह सरकार की गलती है कि उसने मीडिया मालिकों की गर्दन दबोच रखी है। कुछ साल पहले जो पत्रकार बहुत अच्छा काम कर रहे थे, जनता की आवाज उठाते थे, आज वे या तो मीडिया इंडस्ट्री से बाहर हो चुके हैं या फिर अगर नौकरी कर रहे हैं तो वैसा काम नहीं कर पा रहे हैं जैसा वह पहले करते थे। 

बात-बात में मैंने उन्हें एक क्लिपिंग दिखाई जो लोकसभा में 10 लाख करोड़ की कॉरपोरेट कर्ज माफी के बारे में थी। यह सुनकर वे सन्न रह गए कि सरकार तो कहती है उसके पास पैसे की कमी है और सरकार जनता से पैसे वसूलने के तरह-तरह के तरीके खोजती है लेकिन अमीरों का 10 लाख करोड़ रुपए माफ कर देती है, यह तो हद है। 

मैंने उन्हें यह भी बताया कि पिछले 8 साल में देश के सरकारी बैंकों का लगभग 6 लाख करोड रुपए बैंक फ्रॉड के जरिए डूब चुका है। इन बातों के बाद उन्होंने शायद अंदाजा लगाया और मुझसे पूछा कि सर आप क्या करते हैं? मैंने कहा- पत्रकार हूं। उन्होंने पूछा- तो आप यह सब लिखते क्यों नहीं? मैंने कहा- लिखता हूं जहां कहीं भी लिखने की जगह बची है या जो कोई इसे छाप सकता है उनके लिए मैं लिखता हूं। 

इसपर उन्होंने कहा- सर जो बातें आप कह रहे हैं यह तो जनता के फायदे की हैं। सरकार जनता को लूट रही है और आपकी बातें लोगों को समझ में आने वाली हैं लेकिन यह बातें सामने नहीं आ रही हैं। अगर मीडिया आपकी बातों को नहीं रखता है तो आप इनको आर्टिकल बना करके अपने फेसबुक पर लिखिए, इंस्टाग्राम पर लिखिए, ट्विटर पर लिखिए, आजकल बहुत सारे सोशल मीडिया हैं जो इन चीजों को जनता के बीच रख सकते हैं, भले ही मीडिया न छापे। मैं दावे से कह सकता कि जनता को ये बातें समझ में आएंगी। 

उन्होंने यह बात इतनी पुरजोर ढंग से कहीं कि मुझे महसूस हुआ- इस देश की जनता को वास्तव में पत्रकारों की कितनी जरूरत है! मैंने अपने मन में सोचा कि उस कैब ड्राइवर की तरह इस देश में करोड़ों लोग हैं जो या तो सामान्य मध्यवर्गीय हैं या फिर गरीब हैं और उन्हें यह जानना बहुत जरूरी है कि यह देश कैसे चल रहा है। उन्हें यह जानना बहुत जरूरी है कि उनके साथ क्या हो रहा है, उनके देश के साथ क्या हो रहा है, यह सरकार कैसे चल रही है। 

ऐसे लोगों से बात करके हमारा भरोसा बढ़ता है और मन में यह दृढ़ता बढ़ती है कि जब तक ऐसे लोग मौजूद हैं जो सच की कद्र करते हैं, जो जनता के पक्ष में खड़े होकर सोचते हैं, तब तक पत्रकारों को डरने या दबाव में आने की जरूरत नहीं है। 

लिखना जारी रहना चाहिए और जारी रहेगा।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं उनकी टाइमलाइन से)