चीफ जस्टिस एन वी रमन के विदाई भाषण में छलका उनका दर्द


रूप रेखा वर्मा
शनिवार को एक ख़बर ये थी कि उच्चतम न्यायालय के चीफ़ जस्टिस श्री रमन जी ने अपने विदाई समारोह में जो भाषण दिया उसमें एक तकलीफ़ भी बयान की। ख़बर में कहा गया कि उन्होंने कहा कि उनके पूरे कार्यकाल में उनके और उनके परिवार पर नज़र रखी गयी, निगरानी की गयी। इस कारण इन्होंने और उनके परिवार ने अत्यन्त कठिन समय झेला।
    अगर ये बात सही है तो  देश के लोकतांत्रिक इतिहास में संभवतः यह सबसे भयानक स्कैंडल है। अगर देश के उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ही जासूसी के शिकार हों तो पत्रकारों, प्रशासकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, आदि की क्या बिसात? अगर हमारे न्याय के सबसे ऊँचे और आख़िरी दरवाज़े पर ग़ैरक़ानूनी पहरा बैठा हो तो न्याय की हमारी उम्मीद का क्या? जब उच्चतम न्यायाधीश की ऐसी बंदिश और असहायता हो तो बाक़ी न्याय व्यवस्था के हौसले, हिम्मत और स्वतंत्रता का आदर्श कैसे क़ायम रहे? 
    भयंकर सिहरन होती है इस बात से ! 
    क्या आज़ादी के 75 वें वर्ष में हम आज़ादी का हर पहलू खो बैठे हैं? अभी 15 अगस्त को हमने क्या मनाया था? आज़ादी का जश्न और शहीदों की पुण्य स्मृति? या तानाशाही और नागरिक ग़ुलामी के प्रति समर्पण? 
    जनता का ये अधिकार तो बनता है कि पूर्व न्यायाधीश महोदय ये बतायें कि उनकी निगरानी किसने की और कैसे की। यह भी कि न्याय के सर्वोच्च पद पर होते हुये भी उनकी क्या मजबूरियाँ रहीं कि वे इसके ख़िलाफ़ कुछ कर नहीं सके।
( पूर्व वाइस चांसलर व सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा की फेसबुक वॉल से)