राहुल गांधी से नहीं होगा - तो आपलोग परेशान क्यों हैं?
.
संजय कुमार सिंह 

राहुल ने राजनीति के लिए पैदल चलने की बहुत मुश्किल लाइन खींच दी है 

जो लोग आठ वर्षों से हिन्दू मुसलमान, देसी-विदेशी (बांग्लादेशी) कर रहे हैं, पाकिस्तान भेज रहे हैं उनके समर्थक भारत जोड़ो यात्रा का मजाक उड़ा रहे हैं। महात्मा गांधी की हत्या और बंटवारे के 75 साल बाद भारत के टुकड़े कर पाकिस्तान का उदाहरण देने वाले एक मित्र को मैंने पाकिस्तान तोड़कर बांग्लादेश बनाने की याद दिलाई और पूछा कि बिरयानी खाने जाने के बाद से क्या टूटा या जुटा तो वो बिल में चले गए। यात्रा से परेशानी साफ दिख रही है और लोग कह रहे हैं कि राहुल गांधी से नहीं होगा -  पता नहीं क्या? 

पर रोज 20 किलोमीटर चलना तो हो ही रहा है। बाकी जो होना है वह सबको पता है और इसीलिए छटपटाहट है। जैसा मैंने कल लिखा था राहुल गांधी की यात्रा की रिपोर्ट ठीक से हो तो प्रचारकों को समझ में आ जाए कि पप्पू कौन है और पप्पुओं के गिरोह का मुखिया कौन। पर जिस देश के मीडिया का बड़ा हिस्सा दलाली करने लगे (वीडियो सार्वजनिक है) उसके क्या कहने। राहुल गांधी ने कहा है और यह अखबार में छपा है कि वे आरएसएस के किए नुकसान की भरपाई के लिए यात्रा कर रहे हैं पर भाजपा या संघ ने अभी तक ये नहीं पूछा है कि वे किस नुकसान की बात कर रहे हैं। 

इस बीच बिलकिस बानो के बलात्कारियों को रिहा किए जाने पर शाजिया इल्मी ने इंडियन एक्सप्रेस में एक टिप्पणी लिखी थी। इंडियन एक्सप्रेस में आज प्रकाशित एक खबर के अनुसार विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) ने भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता शाजिया इल्मी की कल (10 सितंबर को) प्रकाशित टिप्पणी पर एतराज किया है। इसमें उन्होंने कहा था कि रिहा होने वाले बलात्कारियों का सम्मान करने वाले वीएचपी के लोग थे। अपनी टिप्पणी में उन्होंने नरेन्द्र मोदी को इस विवाद से अलग रखा है। आज छपी खबर के अनुसार वीएचपी ने उनलोगों से किसी भी तरह का संबंध होने से इनकार किया है। 

यह दिलचस्प है कि विश्व हिन्दू परिषद को अपने बारे में पार्टी प्रवक्ता के लेख पर एतराज है लेकिन आरएसएस पर राहुल गांधी के आरोप को लेकर किसी को कोई दिक्कत नहीं है या है तो सीधे सवाल नहीं करके दूसरी तरह से हमला किया जा रहा है। यह विडंबना ही है कि बलात्कारियों की 'संरक्षक' पार्टी में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारा देने के बाद बलात्कारियों को रिहा कराने और उसपर चुप रहने वालों पर तो सवाल नहीं उठ रहा है, ना आरएसएस के किए नुकसान के आरोप पर चर्चा हो रही है पर बंटवारे की कहानी अब याद की जा रही है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं उनकी फेसबुक वॉल से )