शंभूनाथ उवाच



सम्भूंनाथ शुक्ला

कनाडा का सामाजिक जीवन- 4

कुछ लोग कहते हैं कि आप कनाडा की बड़ी तारीफ़ कर रहे हैं, वहीं बस जाओ। यह संभव नहीं है क्योंकि तमाम सारी कूटनीतिक औपचारिकताएँ होती हैं, जो अब नहीं हो सकतीं। दूसरे यहाँ का मौसम हार्ड है। मैं अब यहाँ नहीं रह सकता। तीसरे आदमी को सदैव अपनी मिट्टी प्यारी होती है।
अब आइए, इस सवाल पर कि कनाडा मुझे क्यों पसंद है, तो सुनिये। टोरंटो डाउन टाउन में उबर का ड्राइवर इंडिया से था। उसने MBBS, MD कर रखी थी। भारत के एक अस्पताल में उसे तीन लाख रुपए महीने की सैलरी मिल रही थी। भारत में यह वेतन शानदार है। लेकिन उसने बताया, कि वह जिस अस्पताल (दिल्ली) में था, वहाँ उस पर दबाव रहता था कि हर मरीज़ को वेंटीलेटर पर लिटाओ। उसने कहा, डॉक्टरी का पेशा मानुष की सेवा वास्ते चुना था, लूटने के लिए नहीं। इससे अच्छा था कि मैं डाकू ही बन जाता। यहाँ हमारे फ़ैमिली डॉक्टर पाकिस्तान के हैं, वे कभी एंटी बायटिक दवाएँ भी नहीं लिखते।

अपना देश

मैं फिर कहता हूँ कि भारत प्राकृतिक रूप से विश्व में सबसे शानदार देश है। जो किसी में देश में है, वह सब भारत में है। पर जो नेचर ने भारत को दिया है, वह कहीं नहीं है। बस भारत में लोग सभ्य नहीं हैं। इसकी वज़ह है कि यहाँ कभी कोई राजा सभ्य नहीं रहा। लोक हितकारी नहीं रहा। सब लुटेरे रहे। हमारे मिथकों में बस एक आदर्श राज की कल्पना भर रही।

ताना बाना 

मैं दीवाली पर हिंदू, मुसलमान और सिख मित्रों के यहाँ गया। मिठाई भी बाँटी। गुरुद्वारों में भी गया और मस्जिदों में भी तथा यूपी-पंजाब के मंदिरों में, बंगाल-बिहार के प्रवासियों के मंदिरों में काली पूजा देखी। दक्षिण भारतीय लोगों के मंदिरों को देखा। फिर वेस्टइंडीज़ हिंदुओं के मंदिर में गया। फ़िजी के हिंदू मंदिरों में गया। बांग्ला देश के हिंदू प्रवासियों के मंदिर देखे। पाकिस्तानी हिंदुओं का हिंगलाज मंदिर देखा। रूसी चर्च, कैथोलिक चर्च, प्रोटेस्टेंट चर्च भी देखा। श्रीलंकन ईसाइयों के और चाइनीज़ चर्च भी देख डाले। बौद्ध मंदिर, आर्य समाज मंदिर और स्वामीनारायण सम्प्रदाय के मंदिर देखे। स्कारब्रो के विशाल जैन मंदिर को भी देखा। मैंने कहीं भी कोई अंतर्धार्मिक तनाव नहीं पाया। मेरे 95 दिनों के कनाडा प्रवास का तो यही अनुभव रहा।
बाक़ी तिवारी जी, पाल साहब, राय साहब, ठाकुर साहब, श्रीवास्तव जी, बाँके बिहारी चतुर्वेदी आदि बताएँगे। क्योंकि वे लोग कनाडा समेत 36 देश घूम चुके हैं। इसलिए उनके ज्ञान के आगे मैं अबोध हूँ।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं कनाडा प्रवास के दौरान  उनकी फेसबुक वॉल से )