यू पी में अयिसन बा!!

उत्तर प्रदेश में कानपुर देहात पुलिस द्वारा लोक गायिका नेहा राठौर को उसके गाने के संबंध में दिए गए नोटिस की सोशल मीडिया पर इस कार्यवाही की भर्य्तस्ना हो रही है।बुद्धिजीवी, लेखक व कलाकार पुलिस की इस कार्यवाही की पुरजोर निंदा कर रहे हैं।


पूर्व आईपीएस व लेखक विजय शंकर सिंह ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है कि यूपी की कानपुर देहात जिले की अकबरपुर पुलिस ने, नेहा, Neha Singh Rathore को उनके एक गीत पर, नोटिस जारी किया है। गीत इस प्रकार है। पढ़े और खुद तय करें कि इस गीत में ऐसा क्या है जो समाज में वैमनस्य फैला रहा है ?

बाबा के दरबार बा, ढहत घर बार बा
माई बेटी के आग में झोंकत यूपी सरकार बा...

का बा यूपी में का बा
बाबा के डीएम त बड़ा रंगबाज बा
कानपुर देहात में ले आइल रामराज बा

बुलडोज़र से रौंदत दीक्षित के घरवा आज बा  
यही बुलडोजरवा पे बाबा के नाज बा
का बा यूपी में का बा

आग लगि त हिंदू जिरहें
जिरहें मुसलमान बा
ए बाबा एहिजा ना खाली
अब्दुल के मकान बा……।

अतिक्रमण हटाओ अभियान के अंतर्गत कानपुर देहात में प्रमिला दीक्षित और नेहा दीक्षित नाम की दो महिलाएं झोपड़ी में जल कर मर गईं। प्रशासन और पुलिस पर झोपड़ी में आग लगाने का आरोप है। सरकार ने, एसडीएम और लेखपाल को सस्पेंड कर दिया और खबर है, शायद, लेखपाल गिरफ्तार है। DM कानपुर देहात के खिलाफ अभी कोई कार्यवाही नहीं हुई है। 

इसी मामले में जब नेहा ने यह भोजपुरी गीत गाया तो, पुलिस ने धारा 160 CrPC के अंतर्गत नोटिस भेज दी। आरोप समाज में वैमनस्यता फैलाने का है। नेहा को नोटिस भेजने का निर्णय थानाध्यक्ष का अपना निर्णय तो नहीं ही होगा। यह निर्णय निश्चित ही DM/SP के स्तर पर लिया गया होगा। अब यह निर्णय DM/SP ने अपने विवेक से लिया है या उन्हे भी ऐसा करने के लिए कहा गया है,यह तो वही बताएं। 

पर मैं अपने सेवागत अनुभव से बता सकता हूं कि किसी गीत के आधार पर, जिसका कोई असर इलाके की कानून व्यवस्था पर न पड़ा हो या पड़ रहा हो, इस तरह की जारी नोटिस पहली बार देखने में आई है। धारा 160 सीआरपीसी, जिसके अंतर्गत यह नोटिस जारी है और जिसे, सफीना भी, कहा जाता है यह गवाहों को हाजिर होने के लिए भेजा जाता है। 

राजनीतिक दृष्टिकोण से, प्रेरित होकर, इस तरह की नोटिस जारी करने के फैसले से, एक बात स्पष्ट है कि, इस तरह की नोटिस और अहंकार में लिए, ऐसे प्रशासनिक फैसलों से, कोई भी, प्रशासनिक लाभ नहीं होता है, उल्टे सरकार, पुलिस और प्रशासन की किरकिरी ही होती है और सोशल मीडिया के इस युग में ऐसे फैसले सरकार विरोधी वातावरण भी बनाते हैं। 


वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह लिखते हैं कि
यूपी में सिद्दीक कप्पन के उदाहरण बा 

जिस समाज में महिलाओं को घर में, पर्दे में और सात तालों में रखने का रिवाज रहा हो, तमाम सुविधाओं के बावजूद मां, कई मामलों में पत्नी भी गांव पर ही रहती हो, पति के बिना पहचान ही न हो वहां कलाकार के रूप में ही सही, घूंघट में ही सही – सरकार से सवाल करने और ऐसी सत्ता को नाराज करने का अपना महत्व है। और उसे औकात में लाने की सत्ता की अपनी जरूरत। सामान्य तौर पर ऐसे में कोई भी परिवार कहेगा कि छोड़ो-हटाओ ये सब कुछ और करो। मैं नहीं जानता नेहा सिंह राठौड़ का परिवार इसे कैसे देखेगा और आगे पुलिस किस हद तक जाएगी लेकिन यूपी सरकार ने इसके जरिए नेहा को और बाकी लोगों को ये तो याद दिला ही दिया है कि, यूपी में सिद्दीक कप्पन के उदाहरण बा।

आप जानते हैं कि रिपोर्टिंग की अपनी ड्यूटी पर जा रहे केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को गिरफ्तार कर उसपर ऐसे मामले बनाए गए कि वह दो साल चार महीने जेल में रहा। सरकार के लिए यह जरूरी नहीं है कि मामले सही हो या साबित हों और ना किसी मुआवजे का रिवाज है। बहुमत की लोकप्रिय सरकार को इन मामलों को देखना चाहिए पर सत्ता है ही ऐसी कि एक बार हाथ लग जाए तो छोड़ने का मन नहीं होता है। ऐसे में सिद्दीक पर पीएफआई से कनेक्शन और हिन्सा फैलाने का आरोप लगा दिया गया और वह बचाव में लगा रहा निकल गए सवा दो साल। बात इतनी ही नहीं है। अर्नब गोस्वामी पर जो आरोप है उसके मुकाबले इसका मामला ऐसा था कि अर्नब को तो छह दिन में जमानत मिल गई पर कप्पन को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद महीनों जेल में रहना पड़ा।