धूर्तता, कहिलियात व बेईमानी ही बना "भगवान का इंसाफ"




: 20 सेकेंड में ही यूपी की पुलिस की सारी ताकत, क्षमता, रणनीति और सारी मर्दानगी शीघ्र-पतन की शिकार : नौकरी भर बकलोली, फर्जीवाड़ा, झूठ, जातिवाद और घटिया जीवन का नतीजा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अपनी पूरी नौकरी कहिलियात, अक्षमता, जातिवाद नाकारापन, धूर्त, नेताओं का तलुआचाट या घोर बेईमान बड़े पुलिस अधिकारी सिर्फ बीस सेकेंड में इलाहाबाद में हुए अतीक-इरशाद हत्याकांड पर शर्म करने के बजाय "कुदरत का इंसाफ" बता रहे हैं।
वे यह नहीं मान रहे है कि महज 20 सेकेंड में ही यूपी की पुलिस की सारी ताकत, क्षमता, रणनीति और सारी मर्दानगी एक झटके में ही शीघ्र एवम तत्काल-पतन कर गयी। इन लोगों को अहसास भी नहीं हो रहा है कि यूपी में न्याय-कानून मुंह के बल धड़ाम हो गया।
दरअसल, जो अपनी पूरी नौकरी भर सिर्फ बकलोली, फर्जीवाड़ा, झूठ, जातिवाद और घटिया जीवन घसीटते हुए बेईमानी के साथ नेता-अफसर का गठबंधन जोड़े रहे, इलाहाबाद के हादसे ने उनकी सारी कलई उधेड़ डाली है। नतीजा उन्हें पुलिस की नहीं, बल्कि अब भगवान और कुदरत के न्याय की सफलता का सहारा दिख रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह कहते हैं कि 
जो लोग बुलडोजर न्याय को जायज बता रहे हैं 

कल्पना कीजिए कि कोई कहे कि ठीक है उसने जो सब किया, करने दो मुझे भी मार देना। दूसरे शब्दों में अगर कोई अपराध करके, सांसद-विधायक रहकर मार ही दिया जाए और फिर दूसरा वैसा ही करने और मरने के लिए तैयार हो तो समस्या कैसे खत्म होगी या चक्र कैसे टूटेगा? राजनीत से अपराध कैसे खत्म होगा? 

सरकार और सत्ता की ताकत हिसाब बराबर करने के लिए नहीं, व्यवस्था चलाने के लिए होती है। उसके हिसाब से हत्या बलात्कार (अपराध) होना ही नहीं चाहिए। कोई 100-50 बलात्कार करके या हत्या करके मार भी दिया जाए तो व्यवस्था कहां सुधरी? अपराधी को मारने से ज्यादा जरूरी है, अपराध रोकना आदर्श समाज बनाना। बाइट देने का मौका देकर पत्रकार या पत्रकार के भेष में शूटर के गोली मारने से अपराध नहीं रुकेगा। 

उसके लिये जो करना चाहिए (अनुसंधान, अध्ययन, प्रयोग आदि) वह आप जैसों के समर्थन के बाद होगा ही नहीं और अस्थायी व्यवस्था ही चलती रहेगी। मैंने कुछ दिन पहले लिखा था - पुलिस से परेशान मुख्यमंत्री संसद में रोये थे अब एक पूर्व सासंद-विधायक का परिवार रोयेगा। बदला क्या? आप इसीलिए बोल रही हैं या बोल पा रही हैं कि आप इससे संबंधित नहीं है। करीब से तो नहीं ही देखा-झेला होगा। 

वरना कौन अपराधी अपराध स्वीकार करता है और जब मार ही दिया जाना है तो नियम का पालन क्यों नहीं? अगर ये वाला छूट जाता तो वो वाला नहीं छूटा था?  मामले तो मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर भी रहे हैं / थे। विधिवत न्याय होता है तो संदेश जाता है कि व्यवस्था है, लागू है। मौत की सजा तो वैसे ही बहुत कम होती है। अभी की हत्या अगर ठीक है तो अभी जो लोग सत्ता में हैं वो सत्ता में नहीं थे, उनपर आरोप थे तो पुलिस को वही करना चाहिए था? 

अगर अभी पुलिस ने सही किया तो जाहिर है तब की पुलिस ने वो नहीं किया जो अब सही कहा जा रहा है। आप उसे गलत कहेंगे? कह सकते हैं? मैं उसे सही कहता हूं। इसे गलत।

पत्रकार व घुमक्कड़ पुष्य मित्र कहते हैं कि 
आनंद मोहन, पप्पू यादव, शाहबुद्दीन, मुन्ना शुक्ला, अनंत सिंह, वगैरह वगैरह। ये कुछ नाम हैं, जो महज डेढ़ दो दशक पहले तक बिहार में आतंक के पर्याय थे। आज इनमें से कुछ जेल की सजा काट रहे, कुछ जेल में दिवंगत हो गए, कुछ सुधर गए और बाहर सज्जन की तरह जी रहे हैं।

जब इनकी तूती बोलती थी तो किसी ने सोचा नहीं था कि इन्हें कोई नियंत्रित कर पाएगा। मगर अब इनमें से किसी का खौफ लोगों पर नहीं है। सच तो यह है कि आज की तारीख में बिहार में कोई इनके जैसा बड़ा माफिया या गैंगस्टर नहीं है। इन्हें नीतीश सरकार ने नियंत्रित किया। इसके लिए मौजूदा सरकार ने किसी गैरकानूनी तरीके का इस्तेमाल नहीं किया।

भाजपा के नेता और बिहार के दूसरे लोग आज यूपी में हुए एनकाउंटर पर फिदा हैं और कह रहे हैं कि बिहार में भी ऐसा होना चाहिए। मगर उन्हें यह अहसास नहीं है कि बिहार का अपराधियों को काबू करने का मॉडल यूपी ही नहीं देश के किसी भी राज्य से बेहतर है। 

यहां जो हुआ सब कानूनी तरीके से हुआ और कभी न्यायपालिका का रोना नहीं रोया गया। जो लोग आज न्याय में देरी का रोना रोते हैं उन्हें ठहर कर क्राइम कंट्रोल के बिहार मॉडल को देखना चाहिए। 

फैसला ऑन द स्पॉट बहुत आकर्षक लगता है, मगर यह एक गलत परम्परा है। जब सत्ता और पुलिस के हाथों न्याय करने का अधिकार आ जाए तो वह किसी को कहीं ठोक सकते हैं। यह कोई एकतरफा मामला नहीं है। जहां बीजेपी सरकार नहीं है वहां कोई आरोप लगाकर बीजेपी नेता को भी ठोका जा सकता है। यह परंपरा किसी के हित में नहीं है।

भले कानून के न्याय में देर होती है, मगर पुलिस सड़कों पर न्याय करने लगे यह अच्छी परंपरा नहीं है। अपराध का फैसला अदालत में ही हो यही बेहतर है। कम से कम बिहार का अनुभव तो यही कहता है।

पत्रकार व फिल्मकार विनोड़ कापड़ी 

लेखक व पत्रकार सतेंद्र पी एस कहते हैं कि 
.इलाहाबाद से 5 बार विधायक और एक बार सांसद रहे अतीक अहमद की उत्तर प्रदेश पुलिस की कड़ी सुरक्षा में हत्या कर दी गई। अतीक अहमद भाजपा के सहयोगी दल अपना दल के अध्यक्ष भी रहे हैं, जिसकी स्थापना सोनेलाल पटेल ने की थी।
अतीक अहमद बसपा के विधायक राजू पाल की हत्या के आरोपी थे। 100 से ज्यादा मुकदमे अतीक के ऊपर थे।
उत्तर प्रदेश में जन प्रतिनिधियों की हत्या का इतिहास रहा है। योगी आदित्यनाथ को राजनीतिक चुनौती देने वाले 4 बार के विधायक जमुना निषाद की कथित सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। और एक जमाने मे मन्दिर के खास और बाद में प्रतिद्वंद्वी बने मनीराम से 5 बार विधायक रहे ओम प्रकाश पासवान की हत्या कर दी गई थी।
पत्रकार नीतिन ठाकुर
ना पुलिस उमेश को बचा पा रही है, ना अतीक को!!

आप सुरक्षा किसकी कर पा रहे हैं????