लोकतंत्र: दूर होती आहट
शीतल पी सिंह 


जस्टिस पी सदासिवम, 2014 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस के रूप में रिटायर हुए थे । रिटायर होने के तुरंत बाद सितंबर 2014 में नई नई बनी मोदीजी की सरकार द्वारा पाँच साल के लिए केरल के गवर्नर नियुक्त कर दिए गए । वे उस पीठ में शामिल थे जिसने फ़र्ज़ी मुठभेड़ के मामले में अब के गृहमंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ दर्ज हुई FIR को रद्द कर दिया था!

केरल और सुप्रीम कोर्ट की बार एसोसिएशनों ने इस नियुक्ति को नैतिकता का मज़ाक़ बताते हुए राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर नियुक्ति रद्द करने की माँग की थी!

जस्टिस रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन चार कार्यरत जजों में से एक थे जिन्होंने पद पर रहते हुए ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके देश को सचेत किया था कि जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट को सरकार द्वारा नियंत्रित/संचालित किया जा रहा है उसने लोकतंत्र को ख़तरे में डाल दिया है । मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत की अफ़ीम चाटकर गफ़लत में पड़ी अवाम ने इतनी बड़ी चेतावनी को इस कान से सुना और उस कान से निकाल दिया ।

बाद में जस्टिस रंजन गोगोई चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया बने । उनके ख़िलाफ़ उनकी प्रशासनिक इकाई की एक अधीनस्थ महिला कर्मचारी ने छेड़खानी का आरोप पुलिस में दर्ज करवाया । यह वही समय था जिसके बारे में अनुमान लगाया गया है कि इज़राइल का ख़तरनाक spyware पेगासुस भारत में आ चुका था । यह आरोप भी लगा कि पेगासुस का प्रयोग मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के जजों की जासूसी में भी किया गया! पेगासुस के समक्ष किसी व्यक्ति की निजता का कोई अर्थ नहीं है, आप की किसी भी तरह की इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से लीगई सेवा के ज़रिए वह आपकी हर साँस / हर धड़कन को रिकॉर्ड कर सकता है ।

जस्टिस गोगोई ने रफायल ख़रीद घोटाले, सीबीआई निदेशक वर्मा के मामले और राम मंदिर के मामले में जो रोल निभाया उससे सरकार के पक्ष को न्यायिक सहमति मिली ।

जस्टिस गोगोई के चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया के रूप में रिटायर होने के छह महीने के भीतर उन्हें मोदीजी की सरकार ने राज्य सभा की सदस्यता के लिए मनोनीत कर दिया । देश में वे सब जिनके हिस्से में शिक्षा का प्रकाश आया है और जिनमें आलोचनात्मक विवेक का लेशमात्र भी अंश है इस फ़ैसले पर स्तब्ध थे क्योंकि इसी के साथ जस्टिस गोगोई के ख़िलाफ़ छेड़खानी की शिकायत करने वाली शिकायतकर्त्री का मुक़दमा भी ख़त्म हो गया और उसकी विभागीय प्रोन्नति भी हो गई , उसके पति व परिजनों के ख़िलाफ़ दर्ज आपराधिक मामलों में फ़ाइनल रिपोर्ट लग गईं और इस प्रसंग में पूरी तरह रामराज्य आ गया!

अब जब हममें से कई लोग किसी निचली अदालत या हाई कोर्ट के अजीबोग़रीब केंद्रीय सत्ता पक्षीय / बीजेपी पक्षीय फ़ैसलों पर अचरज करते हैं या राहुल गांधी के मामले में सुनवाई करने के लिए निर्धारित किसी जज साहिबा के सुनवाई से हट जाने पर विस्मित हो जाते हैं तो उनके लिए ऊपर के दो उद्धरण फिर से याद कर लिये जाने ज़रूरी हैं ।साथ ही यह भी देखें कि मौजूदा चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया चंद्रचूड़, जिन्होंने कुछ मामलों में एक हद तक सरकार के रुख़ से असहमत होने का जोखिम उठाया है उनके बारे में सोशल मीडिया पर क्या कुछ खुलेआम लिखा जा रहा है/ वीडियो पर बोला जा रहा है । क़ानून मंत्री/ उप राष्ट्रपति समेत सरकार के तमाम बड़े चेहरे सुप्रीम कोर्ट और कालेजियम सिस्टम पर अचानक कितने ख़ूँख़ार तरीक़े से टूट पड़े हैं ?

यानि अब देश के पदेन चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया की अस्मिता भी सरकार के इशारे / संरक्षण पर ट्रोल और बोट्स द्वारा तार तार की जा सकती है !

इसके बाद यूरोप अमेरिका जापान कोरिया मिडल ईस्ट या अफ़्रीका का कोई अखबार यदि भारतीय लोकतंत्र के वर्तमान स्वरूप पर आलोचनात्मक निबंध लिखे या न लिखे क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं उनकी फेसबुक वॉल से )