हिन्दी पत्रकारिता के जनक पं. युगल किशोर शुक्ल
अनूप कुमार शुक्ल
 
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नागरी का समाचार पत्र :--
" हाल मे इस कलकत्ता नगर से 'उदन्त मार्तण्ड' नामक एक नागरी का नूतन समाचार पत्र प्रकाशित हुआ हैं , इससे हमारे आह्लाद की सीमा नहीं हैं | क्योंकि समाचार पत्र द्वारा दूसरा सम्पत्ति सम्बन्धीय और नाना दिशाओ के देशो के राजसम्पर्कीय वृतान्त प्रकाशित हुआ करते हैं , ज़िनके जानने से अवश्य ही उपकार होता हैं |" 
(समाचार सुधावर्षण 17 जून 1826 श्य़ामसुन्दर सेन )

हिन्दी पत्रकारिता का उदभव् 30 मई 1826 को "उदन्त मार्तन्ड " पत्र के प्रवेशांक प्रकाशित होने के साथ हुआ | हिन्दी पत्रकारिता के आदि सम्पादक पं. युगलकिशोर शुक्ल (1788 -- 1853 ) का जन्म  कानपुर जनपद के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार मे हुआ था | बाद मे वह कलकत्ते जा कर दीवानी अदालत मे प्रोसीडिंग रीडर हुए व बाद मे वकालत की सनद लेकर वकील हो गए | तत्कालीन गवर्नर जनरल से शुक्ल जी ने पत्र प्रकाशन की अनुमति 16 फरवरी 1826 को प्राप्त कर ली थी और  30 मई 1826 को हिन्दी  का प्रथम पत्र "उदन्त मार्तण्ड " निकाला।

प्रथम अंक मे आदि सम्पादक पं. युगल किशोर शुक्ल जी लिखते हैं .......
"यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिन्दुस्तानियों के हित के हेत जो आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजो ओ पारसी ओ बंगले मे जो समाचार का कागज छपता हैं उसका सुख उन बोलियों के जानने ओ पढ़ने वालो को ही होता हैं | इससे सत्य समाचार हिंन्दुस्तानी लोग देख कर आप पढ़ ओ समझ लेओ, पराई अपेक्षा न करे जो अपने भाषे की उपज न छोडे | इसलिए श्रीमान गवर्नर जनरल बहादुर की आयस से ऐसे साहस मे चित्त लगाय के एक प्रकार से यह ठाठ ठाठा | ........ जो कोई प्रशस्त लोग इस खबर के कागज के लेने की इच्छा करें तो अमड़ातला की गली 37 अंक मार्तण्ड छापाघर मे अपना नाम ओ ठिकाना भेजने से ही सतवारे के सतवारे यहाँ के रहने वाले घर बैठे और बाहिर के रहने वाले डाक पर कागज पाया करेंगे | "

पत्र मे प्रकाशित होने वालीआदर्श काव्योक्ति ....
दिनकर कर  प्रगटत दिनहि यह प्रकाशं अठय़ाम |
ऐसो रवि अब उग्यो नहि जोहि तेहि सुख को धामं ||
उत कमलानि विगसित करत बढतव चाव चित वाम |
लेत  नाम  य़ा  पत्र  को  होत  हर्ष  अरु  काम  ||
      
आर्थिक कठिनाईयों  के कारण  4 दिसम्बर 1827 को   उदन्त मार्तण्ड पत्र के विसर्जन की घोषणा शुक्ल जी ने इन  पंक्तियो से कर दी .....
आज तलक लौं उगि चुक्यो मार्तण्ड उदन्त ,
अस्ताचल को जात हैं दिनकर दिन अब अंत |
        
उसके बाद शुक्ल जी ने कुछ पैसा जोड़ कर 1850 मे साम्य दन्त मार्तण्ड  पत्र निकाला जो दो साल बाद 1852 मे बंद हो गया था |

पण्डित युगल किशोर शुक्ल जी ने अपनी पहली संपादकीय में लिखा था कि "हिन्दी का समाचार पत्र कौन पढ़े और खरीदे ?"

"शूद्र चाकरी आदि नीच काम करते हैं, उन्हें पढाई-लिखाई आदि से मतलब नही । कायस्थ फारसी-उर्दू पढ़ा करते हैं और वैश्य अक्षर-समूह सीखकर बही खाता करते है, खत्री बजाजी आदि करते है पढ़ते-लिखते नही, और ब्राह्मणों ने तो कलियुगी ब्राह्मण बनकर पठन-पाठन को तिलांजलि दे रखी है फिर हिन्दी का समाचार पत्र कौन पढ़े और खरीदे ?"

इसी प्रकार उदंत मार्तण्ड पत्र में प्रकाशित एक कनपुरिया समाचार नमूने के रूप में प्रस्तुत है । जिसमें अवध  के नवाब गाजीउद्दीन  हैदर  और लार्ड  एमहर्स्ट  की कानपुर मे हुई भेंट  का समाचार  है । ...
"अवध विहारी बादशाह के जाने के लिए कानपुर के तले  गंगा में नावों  की पुल बन्दी हुई और बादशाह बड़े ठाट  से गंगा पार हो गवरनर जनरेल बहादुर के सान्निध गये | लार्ड  अमहर्स्ट  जब कानपुर पहुँचे  थे उस समय जैसे सिपाहों  का दोहरा  परा  बँधा  था वैसे ही बादशाह के कानपुर जाने में भी परा बँधा था | बादशाह जब कानपुर में बैठे  तब  लार्ड  अमहर्स्ट  अपने आमात्यो  को ले कर  के हाथी की सवारी  पर  ग्राष्ट  साहब की कोठी  से थोड़ी  दूर आंगे बढ  रहे थे ओ  साथ के तुर्क  सवार  चारो ओर से परा बांधे हुए  खड़े थे | इस  उपरान्त  बादशाह एक तख्त  खाली  सवारी  पर  उतरे। ऊपर  ही ऊपर  बडे  साहिब के हाथी पर आ बैठे  ओ बडे साहिब से मिला भेंटी  हुई | फिर वार्तालाप  होते ग्रांट  साहब की कोठी  को गए | लखनौ बादशाह के साथ नवाब मोहतनदौला  और उनके सोलह  आदमी मुसाहिब  साथ थे | लार्ड  साहिबो  ने उस दिन वहाँ  के सब काम ओ पलटिनिये  साहिबो की हाजरी का नेवता दिया था और ८१  आदमियों ने एक मेज मे बैठ के भोजन  किया | भोजन हुए उपरान्त बादशाह को बढ़िया कपडे  और दुशाले ओ भांति भांति के आभरण  ओ रत्न  करके  खचित ओ जटित  एक्यावन  थार  आगे धरा  ओ उनके पोते  को बीस  थार  ओ सब भाइयो को बीस -बीस  थार  के लेखे  दिया गया | फिर लार्ड  साहिब उठ  के बादशाह की ऊँगली  मे बड़े मोल की अंगूठी  पहिना  दी और सब मुसाहिबो  को भी यथायोग  पारितोषिक दिया | फिर अतर  ओ पान  के सम्मान  हुए पर  बादशाह अपनी छावनी को लौट आए | "
(उदन्त मार्तन्ड पत्र  १२ दिसम्बर १८२६ ई० कोलकाता )

विदेशी कपड़ा  का आयात कम्पनी सरकार  बराबर बढ़ाती  जा रही थी  और सूत  आयात करने की छूट  भी उसने दे दी |हिन्दी  के प्रथम पत्र "उदन्त मार्तण्ड" ने कई  वर्षो  के आंकड़े रख  कर  देश की होने वाली हानि  की ओर ध्यान आकर्षित  किया  :---

"सन  १८१५ मे एक लाख उनचास हजार  अरसठ रुपये का ओ १८१६ में एक लाख तिरसठ  हजार छ: सौ  पन्द्रह  रुपये का ओ सन  १८१७ में चार  लाख एक हजार पांच सौ  बिरानबे रुपये का ओ सन  १८१९ मे चार लाख  छेआसठ  हजार सोलह  रुपये ओ सन  १८२० मे आठ  लाख तिरसठ  हजार छे सौ  इकतिस रुपये का ओ सन  १८२१ मे ग्यारह लाख छत्तीश  हजार चौहत्तर रुपये का ओ सन  १८२२ मे ग्यारह लाख सरसठ हजार दो सौ  छिय़ालिस रुपये का ओ सन  १८२३ मे ग्यारह लाख इक्यासी हजार छ : सौ  एकहत्तर  रुपये का ओ सन  १८२४ मे ग्यारह लाख अड़तीस  हजार एक सौ  छेयासठ रुपये का माल आया और सब सूते  की अामदनी  इससे बढ़कर  होगी |
(  उदन्त  मार्तण्ड  ५  सितम्बर   १८२६ ई०)

अनूप कुमार शुक्ल
Anoop Kumar Shukla 

महासचिव कानपुर इतिहास समिति कानपुर। 
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