क्रांति के लिए पब्लिक का रुख मोड़ना होगा
सतेन्द्र पी एस 

अंग्रेजों के खिलाफ जब किसी सशस्त्र विद्रोह की कहानी दिखाई जाती है तो भुजाएं फड़क उठती हैं। जब  हीरो अधमरा पड़ा हो, खून के आखिरी कतरे तक।लड़ने का आह्वान करे। उसमें तमाम ठूँ ठाँ का म्यूजिक बजता है। हीरोइन चिल्लाती है कि तुम्हारी कुर्बानी पर गर्व है। देखने वालों की भुजाएं फड़फड़ा उठती हैं।
जबकि हकीकत इससे उलट होती है। किसी को लाठी से पीटा जाए, गोली लग जाए तो बहुत दर्द होता है। कोई अगर उस व्यक्ति को अपने घर मे रख ले तो उसके पट्टीदार ही कुछ पैसे लेकर मुखबिरी कर देते हैं। वह बन्दा मारा जाता है। मुखबिरी करने वाले मौज करते हैं। मारे  गए व्यक्ति के बाल बच्चों को मुखबिरी करने वाले पूछते भी नहीं।
मुझे भी पहले बड़ा रोमांटिसिज्म होता था कि सुभाष चंद्र बोस फासिस्टों का साथ लेकर अंग्रेजो पर हमला कर दिए होते तो जीत जाते, गांधी ने सब नास कर दिया। अगर 1922 में असहयोग आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो तभी अंग्रेज खदेड़ दिए गए होते।
लेकिन यह सिर्फ रोमांटिसिज्म ही है। खूनी क्रांति हो या अहिंसा की। उसमें जन समर्थन जरूरी होता है। आप जिसके लिए क्रांति मचाए पड़े हैं, कि वह पीड़ित है और वही आपका मजाक बना रहा है तो क्रांति कभी सफल नहीं होगी। पहले पब्लिक का रुख अपनी ओर मोड़ना होता है, तभी बदलाव सम्भव होता है। यह गांधी बखूबी समझते थे।
#भवतु_सब्ब_मंगलम