पंकज मिश्र
गाली दीजिए या कोसिये , चंद्रयान मंगलयान , गगन यान यह misplaced priorties है | स्पेस रिसर्च में इससे ज्यादा जरूरी शोध है करने को .... 80 फीसदी मेडिकल device हम इम्पोर्ट करते है , यहां तक कि हम सर्जिकल कट के बाद स्किन को staple करने वाला स्टेपलर तक नही बना पाते तो सोच लीजिए |
बेशक चंद्रयान से कुछ रहस्य खुलेंगे , ज्ञान में वृद्धि होगी मगर यह हमारे काम की नही है | हमने तो सॉफ्ट लैंडिंग की है अमेरिका ने तो दर्जन भर लोग ही उतार दिए , वापस भी ले आया तो क्या हुआ उससे ...
रूस तो सबसे आगे था कितना फायदा मिला उसको स्पेस वार का ... क्या कारण है कि कोल्डवार के समय यह जो होड़ शुरू हुई थी वह 1972 के बाद लगभग ठप्प हो गई तब तक लोगबाग चांद पर न जाने कितनी बार टहल घूम चुके थे | रूस ने पहला स्पेसक्राफ्ट भेजा , पहला जानवर भेजा पहला अंतरिक्ष यात्री भेजा तो अमेरिका क्यों पीछे रहता उसमें चांद पर पहला यात्री उतार दिया | बाद में दोनों को पता चल गया कि इस होड़ में कुछ नही रखा है तो 1972 के बाद इसमें एकदम से lull आ गया , अमेरिका भी voyager 1 , 2 भेजकर शांत है उसका data मिल रहा है analyse कर रहा है | जब चीन बड़ी ताकत बना तो वह इसमें 2013 में बड़े पैमाने पर उतरा मगर हम लगातार लगे रहे | चंद्रयान 1 भी ऐतिहासिक था 3 भी मगर इससे भारतीयों के जीवनस्तर में सुधार होने वाली कोई चीज़ नही ......
अंतरिक्ष मे करने के लिए असंख्य काम है , इंटरनेट के फील्ड में जिसमे elon musk की बपौती है उसे खत्म करें , मौसम प्रेडिक्शन वाला प्रोग्राम useful है , spying कार्यक्रम सामरिक महत्व का है , लांच वेहिकल का कमर्शियल प्रयोजन भी फायदेमंद है ऐसे और भी बहुत सारे क्षेत्र होंगे जो प्राथमिक जरूरत के होंगे | प्राथमिकता जीवन को बेहतर बनाने वाले उपक्रमों की होनी चाहिए क्योंकि हम एक गरीब देश है | हमारी 73 फीसद आबादी की आय मेडागास्कर की पर capita से मैच करती है जो दुनिया का 5 वां गरीब देश है |
आखिर क्या कारण है कि पूरा योरप इक्का दुक्का ऐसे प्रयोगों के अलावा moon , maars , space , venus sun मिशन से लगभग निर्लिप्त है जबकि हम सब जानते है आधुनिक ज्ञान विज्ञान के महाविस्फोट की जमीन योरप में ही तैयार हुई |
मैं वाकई जानना चाहता हूं कि ग्रहों पर उतरने के कार्यक्रम से हम भारत के लोगो के जीवन में ठोस क्या मिलने वाला है | बेशक कुछ रहस्य खुलेंगे , ज्ञान बढ़ेगा मगर चांद और मंगल पर पानी ढूंढने से क्या यहां साफ पानी की समस्या हल होगी |
अमरीका स्पेस टूरिज़्म करे , चांद पर कॉलोनी बनाये , उनसे हमारी तुलना ही नही है , चीन के आस पास आने में हमे पता नही कितने दशक लगे , तो वो ऐसी होड़ में शामिल हो तो हो , लेकिन वो सब और भी बहुत कुछ कर रहे है | इतना uneven मामला नही है उनका | पूरी दुनिया की सप्लाई चेन और अर्थव्यवस्था को कंट्रोल किये पड़े है |
और हम है जो चंद्रयान के लांचिंग pad बनाने वाले psu , HEC के कर्मचारियों को 18 महीने से सैलरी नही दे पा रहे है , यह इस मिशन का अंधेरा कोना है , पहले यह अंधेरा दूर करिए | यह न बताइए कि बस 600 करोड़ में हुआ है यह भी सोचिए कि 1000 वैज्ञानिक 4 साल से इस प्रोजेक्ट में लगे थे , यह किसी और फील्ड में और बेहतर रिसर्च कर सकते थे जिससे हमारा जीवन स्तर सुधरता सिर्फ गर्व करने से पेट नही भरता |
लाखो प्रतिभाएं कर्ज़ लेकर विदेश में पढ़ाई करने जा रही है और आप IISER के छात्रों का STIPEND भी नही दे पा रहे .....अब IITS पर आपकी नजर टेढी हुई है | अपना भृकुटि गुण बदलिये और देखिये रिसर्च पर आप PER CAPITA कितना खर्च करते है , कितने पेटेंट आपकी झोली में सालाना आते है | तो कालर ऊंची करने से पहले देख लीजिए पजामे में पैबंद तो नही लगा है |
बाकी आइए गरियाइये स्वागत है |
( लेखक डिजिटल क्रिएटर है)