जीडीपी 7.8% या 4%

आर के भारद्वाज 

ये सारे अर्थशास्त्री लगता है आंकड़ों के खेल से ही कमाई करने के लिए होते हैँ... हम तो मान लेते हैँ कि सरकारी आंकड़े बिल्कुल सही हैँ.... पर इससे फर्क क्या पड़ता है आम आदमी को?कोई इन नेताओं  से पूछे कि देश की सड़को पर दौड़ते हुए टेढ़े मेढ़े रेहड़े, रिक्शे, साइकिलेँ,ठेले फटफटिये और दिल्ली तक के हाट बाज़ारो मे खड़े 50-60 साल पुराने सामान ढोने वाले तिपहिये नहीं देखे क्या जिनमे ताला भी जंजीर वाला लगता है कि कोई कबड़िया धकेल कर न ले जाये और इनमे लाइट एक भी नहीं....
करोड़ोँ झुग्गी झोपड़ियाँ... सुबह शाम देश के हर शहर मे ठेलो या पीठ पर बोरे लादे कूड़ा बीनने वाले सबने देखे हैँ, नेताओ ने नहीं...
बेहिसाब अवैध फैक्ट्रीयाँ और उनमे दयनीय हालत मे काम करते मज़दूर.... आधा देश दिहाड़ी मज़दूरी पर निर्भर है 
देश की 80% जनता मुफ्त का घटिया अनाज खाने पर निर्भर है... यह तो एलान खुद मोदीजी का है l
करोड़ो लोग मीलो मील चल कर पीने का पानी लाते हैँ, और यहाँ शौचालय के नगाड़े बजाए जा रहे हैँ... कोई जाकर हमारे देश के सरकारी अस्पताल और स्कूल देखे l रेलवे और बस की हालत देख ले..... और सबसे बढ़ कर बेरोज़गारी!!!!
देश की अर्थव्यवस्था पर लगे टाटा बिरला अम्बानी और अडानी जैसे बड़े बड़े शहद के छत्ते, जिनका आधा शहद नेता पीते है, इन्हे देख कर गुमान पाले बैठे हैँ हमारे नेता कि फ्रांस को पछाड़ कर दुनिया मे पांचवे नंबर पर आ पहुंचे...!!!!
 हमारी अर्थव्यवस्था की हालत कुछ अजीब ही है ..... कोई 4% GDP का लेबल लगाये या इससे 4 गुना का.....हम सबको संभाले हुए है हमारी कृषि.... रोटी पानी चल रहा है... आंकड़ों से नहीं इससे.... और क़ृषि पर भी कारपोरेट जगत की काली नज़र है.... यहाँ जिस दिन गड़बड़ हुई उस दिन पता चलेगा हमारी हालत कितनी डाँवाडोल है.... पर नेताओ, लालो,और अर्थशास्त्रियों पर कोई पर कोई असर नहीं पड़ेगा....... FDI नाम की एक बहुत बड़ी जादू की छड़ी है... चमत्कार करेगी इनके लिए.... आगे चलकर देश का कितना भी नुक्सान करे I
लाखो किसान तो आज ही आत्महत्याएँ कर रहे हैँ...7.8 %के आंकड़े वालो को कोई शर्म आती है?...उनका सारा ध्यान इस वक़्त लगा होगा कि हमारी GDP को ४%बताने वाले को दीवालिया कैसे घोषित करें... आखिर देश की इज़्ज़त का सवाल है l